जंगल से निकलती रही घास तो संकट में आ जाएंगे वनराज
भोपाल, बाघों की संख्या के मामले में मध्य प्रदेश अव्वल बने रहने के लिए प्रयासरत है, पर इसमें कई अड़चनें भी हैं। प्रदेश के जंगलों से हर साल 1053 लाख टन चारा (घास) निकाला जा रहा है, जो देश में सर्वाधिक है। यह स्थिति आने वाले समय में जंगल के राजा यानी बाघों के जीवन के लिए संकट पैदा करेगी। सबसे ज्यादा चारा निकाले जाने की जानकारी भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की रिपोर्ट से मिली है। हालांकि यह रिपोर्ट जारी नहीं हुई है, सिर्फ परीक्षण के लिए अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश भी आई है। मध्य प्रदेश में वर्तमान में देश में सबसे ज्यादा 526 बाघ हैं। एफएसआई ने ईंधन के लिए ग्रामीणों की जंगल पर निर्भरता को लेकर अध्ययन किया है। इससे पहले यह अध्ययन वर्ष 2011 में हुआ था।
लोगों का बना धंधा
रिपोर्ट के मुताबिक जंगल के पांच किमी की परिधि में बसे गांवों के लोग जलाऊ और छोटी इमारती लकड़ी के साथ चारा भी निकालते हैं, जो पशुओं के खाने और बेचने के काम आता है। प्रदेश के जंगलों से हर साल 1053 लाख टन चारा निकल रहा है।
संख्या होगी प्रभावित
देश में दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र और तीसरे पर गुजरात है। यह स्थिति मध्य प्रदेश में बढ़ते बाघों के लिए ठीक नहीं है। बाघों का जीवन चक्र शाकाहारी वन्यप्राणियों पर निर्भर है और शाकाहारी वन्यप्राणी घास के मैदानों पर। वे घास में ही छिपते और प्रजनन करते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि घास के मैदान ही नहीं रहेंगे, तो शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या पर असर पडऩा स्वाभाविक है।
घांस के फायदे
चीतल, सांभर, हिरण, काले हिरण, नीलगाय सहित अन्य शाकाहारी वन्यप्राणियों को पेट भरने, छिपने और प्रजनन में घास के मैदान मददगार होते हैं और शाकाहारी वन्यप्राणी बढ़ेंगे, तो बाघों को जंगल में खाना मिलेगा। फिर वे बाहर नहीं निकलेंगे और वे दुर्घटना के शिकार नहीं होंगे या शिकारियों के जाल में नहीं फंसेंगे।
ज्यादा मौतें भी मध्य प्रदेश में ही
देश में बाघों की सबसे ज्यादा मौतें भी मध्य प्रदेश में ही होती है। पिछले साल यहां 28 बाघ मरे थे। इनमें से ज्यादातर की मौत संरक्षित क्षेत्र के बाहरी इलाके में हुई है। इनमें शिकार और दुर्घटना के मामले भी शामिल हैं।
इनका कहना है
बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए घास के मैदान तैयार करने पड़ते हैं। प्रदेश के कई पार्कों में ऐसा किया गया है। जिन संरक्षित क्षेत्रों (टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और अभयारण्य) से वनग्राम विस्थापित किए गए हैं, वहां घास के मैदान तैयार किए गए हैं। इसका असर वर्ष 2018 की बाघ गणना में दिखाई दिया है।
डॉ. सुदेश वाघमारे, पूर्व उप संचालक, वन विहार नेशनल पार्क, भोपाल