बारिश का मौसम, हरा चारा और पशुओं में अफारा (पेट फूलना)

बारिश का मौसम, हरा चारा और पशुओं में अफारा (पेट फूलना)

डॉ. शिवम सिंह मेहरोत्रा
डॉ. हेमंत मेहता
डॉ. आर.के बघेरवाल
डॉ. मुकेश शाक्य
पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय महू
प्रिय पशुपालक भाइयों, जैसा की बारिश के मौसम में हरे चारे की अधिकता हो जाती हैं और आप सभी पशुपालक पालतू गाय - भैंसों को चारागाहों में चरने के लिए भेजते हैं या पशु बाडे में ही में ही हरा चारा उपलब्ध कराते है। अत्यधिक हरे चारे के सेवन की वजह से पशुओं में अफारा नामक समस्या हो जाती है। अफारा रोग में पशु के पेट में गैस भर जाती है। जिससे पेट फूल जाता है तथा उसका दबाव वक्षगुहा में फेफड़ों पर पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप श्वसन में बाधा आती है और जानवर मर जाता है। 
अफारा गोपशुओं तथा भैंस का मुख्य रोग है जो दाल वाली फसलों या हरा चारा ज्याद खाने से होता है।
दाल वाली फसलों के खाने से पेट में गैस अधिक बनती है। हरे चारे जैसे बरसीम आदि अधिक खाने से भी अफारा होता है। यदि किसी कारण यथा फोड़ा, कैन्सर आदि से खाने की नली में रुकावट हो तो गैस बाहर नहीं निकल पाती व पेट में ही एकत्रित होती रहती है।

यह रोग संक्रामक नहीं है अत: कभी-कभी एक-दो पशु को होता है। इससे गाय, भैंस, जैसे आदि पशु सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। विशेष रूप से जब उनके चारे में कोई बदलाव आता है या उन्हें दाल वाला दाना जैसे चना, ज्वार आदि अत्यचिक मात्रा में खिला दिया जाता है तो गैस अधिक बनती है जिससे अफारा हो जाता है। हरा चारा जो ओस अथवा वषाज़् से भीगा रहता है, के खाने से।
सड़ा-गला चारा या चारे में अचानक परिवर्तन करने से। गीला, दलहनी या रसदार चारा (बरसीम / लूसर्न आदि) खाने से।

रोग के लक्षण

इस रोग में पशु का पेट फूल जाता है। पेट में अधिक मात्रा में गैस भरी होती है। जिसे दबाने पर डोल की तरह की आवाज करती है। रोगी जानवर को बेचैनी होती है व दर्द होता है जिससे वह बार-बार उठता बैठता है। रोगी पशु का मल-मूत्र नहीं निकलता। पशु बार-बार चक्कर लगाता है व बेहोश होकर गिर पड़ता है। पशु का जुगाली  बन्द ,पशु हमेशा बायीं ओर देखता है। पिछले पैर पटकना एवं पेट पर मारना, बायीं तरफ का पेट फूला हुआ। मुँह खुला एवं नाक फैली हुई, श्वास लेने में तकलीफ। फूले हुये पेट को थपथपाने पर ढोल जैसी आवाज। पेशाब जल्दी-जल्दी अथवा बन्द। कष्ट के कारण कराहना, पशु बार-बार उठता बैठता है।

रोग का निदान

पशु के खाने का इतिहास और उपस्थित लक्षणों को देखकर रोग का निदान किया जाता है। बायीं कोख को थपथपाने से डम डम या ढोल जैसी आवाज का आना इस रोग का निश्चयात्मक लक्षण है। इस रोग का निदान लक्षणों के आधार पर किया जाता है। पेट में अत्यधिक गैस भरी होती है जिसे बजाने पर डोल जैसी आवाज निकलती है।
उपचार: उपचार के लिए पशु को तेल पिलाया जाता है जिससे गैस बनने में कमी आती है। चारा-दाना कम देना चाहिए ताकि अफारा दुबारा जल्दी न हो। इस रोग के उपचार के लिए आधा लीटर वनस्पति तेल जैसे अलसी, तिल, मूंगफली, सरसों आदि की आधा लीटर मात्रा, 50 से 60 मिली लीटर तारपीन की मात्रा पशुओं को नाल की सहायता से तुरंत दें।
बड़े पशुओं को 100 से 125 मिली लीटर तारपीन का तेल, 40 ग्राम हींग का चूरा, 100 ग्राम नौसादर को लगभग आधा लीटर अलसी के तेल में मिलाकर दें। प्रारंभ में अफारा से पीडि़त पशु को खड़ा कर दौड़ा दें, फिर कोई उपयुक्त दवा दें या अंत में पेट की वायु निकालने के लिए एक विशेष प्रकार के यंत्र की सहायता से अमाशय में छेद करना लाभदायक रहता है। 
अफारा की रोकथाम: पशुओं के आहार में अचानक परिवर्तन ना करें। ऐसे हरे चारे जिन में  पानी की अधिकता रहती है जैसे कि बरसीम, लुसर्न, हरी घास को प्रतिदिन धीरे-धीरे मात्रा में बढ़ोये जिससे कि अफारा ना हो। पशु चिकित्सक से समय रहते इलाज कराएं।

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