काले मोतियों की उजली कहानी, बस्तर के जंगलों की जुबानी

काले मोतियों की उजली कहानी, बस्तर के जंगलों की जुबानी
डॉ शशिकान्त सिंह
कृषि संवाददाता
बस्तर। काले मोतियों की खेती कोंडागांव में धीरे-धीरे परवान चढ़ रही है। लगभग 25 साल पहले यहाँ के एक प्रगतिशील किसान वैज्ञानिक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने खेती के जो जैविक एवं हर्बल खेती के जो नए नए प्रयोग शुरू किये थे। उनमें सबसे प्रमुख सपना था छत्तीसगढ़ के लिए काली-मिर्च की नई प्रजाति का विकास तथा उसे छत्तीसगढ़ के किसानों के खेतों पर और जंगलों में सफल करके दिखाना।
डॉ त्रिपाठी की 25 सालों की मेहनत अब धीरे-धीरे रंग दिखाने लगी है। आज क्षेत्र के सैकड़ों छोटे छोटे आदिवासी किसान अपने घरों की बाड़ियों में खड़े पेड़ों पर काली मिर्च उगा रहे हैं और थोड़ा बहुत ही सही पर नियमित अतिरिक्त कमाई करने में सफल हुए हैं। इधर दूसरी तरफ सफलता की एक नई इबारत बस्तर के जंगलों में भी लिखी जा रही है।
दरअसल कुछ समय पूर्व डॉ.राजाराम त्रिपाठी ,"मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर" इनकी सहयोगी समाज सेवी संस्था संपदा ने प्रशासन तथा वन विभाग के सहयोग व मार्गदर्शन में आसपास की कुछेक वन क्षेत्रों में भी प्रायोगिक रूप से साल के पेड़ों पर तथा अन्य प्रजाति के पेड़ों पर भी मां दंतेश्वरी हर्बल समूह द्वारा विकसित काली मिर्च की नई प्रजाति के पौधे लगाए गए थे। आज काली मिर्च की उन लताओं में फल आने लगे हैं। गर्मी की छुट्टियों के कारण घर में खाली बैठे बच्चों ने निकट की जंगलों में पड़े उस काली मिर्च को इकट्ठा किया और लाकर आगे विपणन हेतु मां दंतेश्वरी हर्बल समूह में जमा किया बच्चों द्वारा जेब खर्च के लिए इकट्ठा किए गए। इस काली मिर्च के उन्हें मां दंतेश्वरी हर्बल समूह से ₹4000 चार हजार का तत्काल भूगतान मिल गया हैं।‌ इतना ही नहीं यह काली मिर्च मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के अन्य सदस्यों की काली मिर्च के साथ आगे अगर ज्यादा कीमत पर बिकेगी तो इन्हें नन्हे संग्रहकर्ताओं को भी इसका अतिरिक्त लाभांश मिलेगा। इसके लिए इन लोगों का नाम पता फोन नंबर आदि दर्ज कर लिए गया हैं। इससे बच्चों का और उनके परिवार वालों का दोनों का उत्साह बढ़ा है। बच्चों के साथ आए उनके परिजनों का कहना था कि बच्चों के द्वारा खेल खेल में इकट्ठा किए गए इस काली मिर्च से बच्चों के आने वाले साल की पढ़ाई, की किताबों और नए कपड़ों के खर्चे की व्यवस्था हो गई है। इससे बच्चे और उनके मां-बाप सभी बहुत खुश हैं।
जाहिर है इससे बच्चों को और अधिक काली मिर्च इकट्ठा करने की प्रेरणा मिलेगी और अब गांव के लोग भी ये हर साल अतिरिक्त आमदनी देने वाली काली मिर्च की लताएं जिन पेड़ों पर चढ़ी हैं। उन पेड़ों को काटने से परहेज करेंगे और शायद इससे बस्तर छत्तीसगढ़ का जंगल भी बच जाए...।

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