हमें ऐसे पौधे लगाने चाहिए जिन पर मधुमक्खियां आकर परपरागण कर सके: डॉ. अरविन्द कुमार शुक्ला
किसान मधुमक्खी पालन की बारिकियां व खूबियां समझकर एक नये व्यवसायी व सफल उद्यमी बने: डॉ. एस. आर. के. सिंह
ग्वालियर। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर में लघु कृषक कृषि व्यापार संघ एवं कृषि विज्ञान केन्द्र ग्वालियर द्वारा मधुमक्खी पालन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कायज़्शाला एवं जागरूकता कायज़्क्रम का शुभारंभ किया गया। जिसका उद्वेश्य मधुमक्खी पालन कृषि आधारित व्यवसाय को बढ़ावा देना है।
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मधुमक्खी पालन में कनाज़्टक के प्रगतिशील मधुमक्खी पालक डॉ. मधुकेश्वर हेगड़े ने अपने उद्बोधन में बताया कि वह किस प्रकार एक गरीब परिवार से उठकर एक प्रगतिशील उद्यमी बनें। जीवन में उन्हें कितनी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। श्री हेगड़े ने कहा मेरे जीवन की सफलता में मेरी माता व उनके दिये संस्कारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आप सभी भी अपने माता-पिता व धरती मां का सम्मान करें। उनके द्वारा शहद से बने उत्पाद हनी जैम, लेमन जिंजर हनी जूस, रॉयल जैली, तुलसी हनी, सुपारी हनी, जामुन हनी, हनी लिप बाम, हनी बीटरूट लिप बाम, हनी पॉलन, हनी सॉप आदि उत्पादों का प्रदशज़्न कर किसानों को संबोधित किया। श्री हेगड़े द्वारा मधुमक्खी पालन हेतु 500 से ज्यादा कॉलोनियां बनाई गयी है, जिनसे उनकी स्वयं की वषज़्भर की आय 2 करोड़ 28 लाख रूपये है साथ ही वे 300 कर्मचारियों को रोजगार भी दे रहे है। हाल ही में भारत सरकार की परिवहन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा नेशनल मिलिनियर अवाडज़् से भी सम्मानित किया गया है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जबलपुर अटारी जोन 9 के निदेशक डॉ. एस. आर. के. सिंह ऑनलाइन माध्यम से जुड़े। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला से आप सभी युवा एवं किसान मधुमक्खी पालन की बारिकियां व खूबियां समझकर एक नये व्यवसायी व सफल उद्यमी बने। साथ ही उत्कृष्ट व विकसित भारत के सपने में अपनी सहभागिता करें ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविन्द कुमार शुक्ला ने कहा कि सफल उद्यमी मधुकेश्वर हेगडे की सफलता से मुझे प्रेरणा मिली है, आप सब भी इनसे प्रेरणा लें। उन्होंने कहा कि हमने अपना जीवन केवल धान व गेंहू की फसल पर ही निर्भर कर लिया है। हमें विविधीकरण कर ऐसे पौधे लगाने चाहिए जिन पर मधुमक्खियां आकर परपरागण कर सके। हमें और आपको प्रकृतिपरक होने की आवश्यकता है। हम अपनी फसल तकनीक को बदलें ताकि सरसों की फसल के मौसम के अतिरिक्त भी अन्य मौसम में मधुमक्खी पालन किया जा सके। डॉ. शुक्ला ने कहा सफल होने के लिए शिक्षा ही एक माध्यम नहीं है यदि सफल होने चाहते है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने पढ़े लिखे है। आपकी सफलता में व्यवहार, शैली, आत्मविश्वास आदि भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
कार्यक्रम में निदेशक विस्तार सेवायें डॉ. वाय.पी. सिंह, राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के रंजीत सिंह, अटारी जोन 9 के वैज्ञानिक डॉ. हरीश मंचासीन रहे। कार्यशाला में कुलसचिव अनिल सक्सेना, कृषि विज्ञान केन्द्र ग्वालियर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राज सिंह कुशवाह, लगभग 200 किसान प्रत्यक्ष रूप से व अन्य 1000 किसान ऑनलाइन माध्यम से जुडे। कार्यशाला का स्वागत भाषण कृषि वैज्ञानिक अरविन्द कौर, धन्यवाद भाषण कृषि वैज्ञानिक डॉ. अमिता शर्मा व संचालन वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रश्मि वाजपेयी द्वारा किया गया।
तकनीकी सत्रों में बताया गया कि मधुमक्खियों द्वारा फसलों में परपरागण क्रिया होती है जिससे फसलों के बीज उत्पादन तथा फलदार वृक्षों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। मधुमक्खी पालन हेतु उपयुक्त फसलों जैसे सरसों, तोरिया, बरसीम, अजवायन, धनिया, बाजरा, तिल, नीम, व अन्य फूलों वाले पेड-पौधे मधुमक्खियों के लिए मधुरस व पराग का उत्तम स्त्रोत है।