हरी खाद: नष्ट होती मिट्टी की उपजाऊ क्षमता रोकने के लिए जरूरी, जानिए हरी खाद के लाभ

हरी खाद: नष्ट होती मिट्टी की उपजाऊ क्षमता रोकने के लिए जरूरी, जानिए हरी खाद के लाभ

भोपाल, कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण, रासायनिक उर्वरकों और खरपतवार नाशकों, कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का अंधाधुंध उपयोग किया जाने लगा। सघन कृषि पद्धति एवं असंतुलित रासायनिक खादों के प्रयोग के कारण मिट्टी की उपजाऊ क्षमता दिन-ब-दिन नष्ट होती जा रही है, जिसे गोबर खाद/कम्पोस्ट खाद/हरी खाद से ही रोका जा सकता है।

सनई, ढेंचा, उड़द, मूंग, लोबिया तथा ग्वार का प्रयोग 
हरी खाद के लिए दलहनी या फलीदार तथा अदलहनी या बिना फलीदार फसलें उपयोग की जाती है इसके लिए प्रमुख रूप से सनई, ढेंचा, उड़द, मूंग, लोबिया तथा ग्वार का प्रयोग किया जाता है तथा अदलहनी फसल ज्वार, मक्का, बाजरा एवं सूर्यमुखी की फसलें मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा उपलब्ध करा सकती है। ये फसलें शीघ्र बढ़ने वाली, खूब पत्तियों वाली व शाखादार हो तथा फसलों के वानस्पतिक भाग मुलायम हो ताकि ये आसानी से सड़ने योग्य हों। दलहनी फसलों की बुवाई के समय 20-25 किग्रा. नाइट्रोजन तथा अदलहनी फसलों के लिए 40-60 किग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्रयोग लाभकारी रहता है। फॉस्फोरस तथा पोटाश का प्रयोग आवश्यकतानुसार मृदा में उनकी उपलब्धता के अनुसार बुवाई के समय उपयोग करना चाहिए।

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खेत में हरी खाद को उगाकर जोत देना 
इस विधि में हरी खाद की फसलों को उसी खेत में उगाया जाता है जिसमें कि खाद देनी होती है, फिर उसे खेत में जोत देते हैं।
अपने स्थान से दूर उगाई जाने वाली हरी खाद की फसलें इस विधि में हरी खाद की फसल को अन्य खेतों में उगाते हैं तथा हरी खाद की फसल को एक खेत में काटकर अन्य दूसरे खेत में मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से पत्तियों, तनों आदि को मिट्टी में मिला दिया जाता है। अधिक दिनों की फसल हो जाने के पश्चात उनका रेशा कड़ा हो जाता है जिससे उनके अवधरन की क्रिया सुचारू रूप से नहीं हो जाती इसलिए जब रेशा मुलायम हो उसी अवस्था में फसल की जुताई कर पलटना आवश्यक होता है। वैसे सामान्यतः 40-60 दिन की फसल होने पर मिट्टी पलट हल से अच्छी तरह से जुताई कर फसल को 15-20 सेमी. की गहराई पर मिट्टी में मिलाकर खेत में पानी भर देना चाहिए। जब धान के खेत में नाइट्रोजन की पूर्ति हेतु यूरिया का छिड़काव किया जाता है उस क्रिया में हरी खाद के फसल की अपघटन में सहायता मिलती है तथा फसल की पैदावार के साथ-साथ अगली फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ मृदा में उपलब्ध हो जाता है और मृदा संरचना में सुधार होता है तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है तथा आपूर्ति सुलभ हो जाती है।

यूरिया उर्वरक बचत करने का वैकल्पिक उपाय 
हरी खाद का उपयोग कर यूरिया उर्वरक बचत करने का वैकल्पिक उपाय है। मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने में हरी खाद का प्रयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। सघन कृषि पद्धति के विकास तथा नगदी फसलों के अंतर्गत क्षेत्रफल बढ़ने के कारण हरी खाद के प्रयोग में निश्चित ही कमी आई है। लेकिन बढ़ते उर्जा संकट, उर्वरकों के मूल्यों में वृद्धि पर्याप्त आपूर्ति न होना तथा गोबर की खाद एवं अन्य कंपोस्ट जैसे कार्बनिक स्त्रोतों की सीमित आपूर्ति से आज हरी खाद एक वैकल्पिक एवं प्रभावकारी उपाय है।

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नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सहयोग प्रदान करते हैं हरी खाद
दलहनी एवं अदलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि के उपरांत मृदा की उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए जुताई करके मिट्टी में अपघटन के लिए दबाना ही हरी खाद देना है, ये फसलें अपने जड़ ग्रंथियों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु द्वारा वायुमंडल में विद्यमान अपार भंडार से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सहयोग प्रदान करते हैं।

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हरी खाद के लाभ
मृदा सतह में पोषक तत्वों का संरक्षण एवं एकत्रीकरण।
मृदा में जीवांश एवं फसलों हेतु आवश्यक नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ाते हैं।
खरपतवार नियंत्रण।
मृदा की भौतिक दशा सुधार करना।
क्षारीय एवं लवणीय भूमियों का सुधार करना।
वर्षा जल को भूमि में अधिक मात्रा में अवशोषण करने की क्षमता बढ़ाना।
फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना।
हरी खाद के आवश्यक गुण:-
फसल कम समय में अधिक वृद्धि करती हो।
फसल की जड़ें अधिक गहराई तक पहुंचती हो।
फसल के वानस्पतिक अंग मुलायम हो।
मदा के जीवांश पदार्थ के स्तर को बनाए रखने के लिए हरी खाद उगाना आवश्यक है।
लवणीय भूमि के सुधार के लिए व मृदा क्षरण/कटाव को कम करने हेतु।
रासायनिक खादों के उपयोग में निरंतर कमी लाने हेतु।
फसल की जल मांग व पोषक तत्वों संबंधी मांग कम हो।
कीट पतंगों के आक्रमण को सहन करने वाली हो।
भूमि पर प्रभाव अच्छा छोड़ती है।
विभिन्न प्रकार की मृदाओं में पैदा हाने में सक्षम हो।
हरी खाद की फसलें:- सनई, ढेंचा, उर्द, लोबिया, बरसीम, मूंग सैंजी, ग्वार इत्यादि ।

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खाद देने की विधियां
हरी खाद की स्थानीय विधि (इन सिटू विधी):- इस विधि में हरी खाद की फसल को उसी खेत में लगाया जाता है। जिसमें हरी खाद का उपयोग करना होता है, यह विधि समुचित वर्षा अथवा सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में अपनाई जाती है। इस विधि में फूल आने से पूर्व वानस्पतिक वृद्धिकाल (6-8 सप्ताह) में मिट्टी में पाटा या ग्रीन मैन्योर टैम्पलर से पलट दिया जाता है।
हरी पत्तियों की हरी खाद :- इस विधि में हरी खाद की फसलों की पत्तियों एवं कोमल शाखाओं को तोड़कर खेत में फैलाकर जुताई द्वारा मृदा में दबाया जाता है। व हल्की सिंचाई कर उसे सड़ा दिया जाता है। यह विधि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उपयोगी होती है।

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