शोभा की वस्तु बन गए कृषि विज्ञान केंद्रों के गोद लिए 'मॉडल गांव'
जिम्मेदारों की अनदेखी से शोभा की वस्तु बन गए 'मॉडल गांव'
अरविंद मिश्र
भोपाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हर जिले के दो गांवों को गोद लिया है। इन मॉडल गांवों को डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज नाम दिया गया है। मप्र के 53 कृषि विज्ञान केंद्रों सहित देश के 651 केंद्रों ने गांव गोद लिए हैं। लेकिन गोद लिए गांवों में खेती-किसानी की स्थिति देखकर ऐसा नहीं लगता है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। दरअसल, कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा गोद लिए गए अधिकांश गांवों में न तो मिट्टी परीक्षण हो पाया है, न ही किसानों को उन्नत खेती का प्रशिक्षण मिला है। जिन गांवों में मिट्टी का परीक्षण करने वैज्ञानिक पहुंचे वहां दोबारा वे लौटकर नहीं गए। आज जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते स्थिति यह है कि कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा गोद लिए गए गांवों में खेती-किसानी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। किसानों की आय भी नहीं बढ़ पा रही है।
किसान की आय को 2022 तक दोगुना करना है, किसान को आत्मनिर्भर और खेती को लाभ का धंधा बनाना है। अब किसानों के हर ब्लॉक में दो समूह बना रहे हैं। इसमें कम से कम 300 सदस्य और अधिक से अधिक सदस्य कितने भी बन सकते हैं। अब किसान खुद खेती करेंगे, ग्रेडिंग करेंगे, प्रोसेसिंग करेंगे और निर्यात भी करेंगे। जो अभी तक बिचौलिए कमाते थे, वह किसान कमाएंगे।
कमल पटेल, कृषि मंत्री
कागजों पर मॉडल गांव
मप्र में एक तरफ किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खजाना खोल रखा है। वहीं दूसरी तरफ स्थिति यह है कि प्रदेश के 53 कृषि केंद्रों ने जिन गांवों को गोद लिया है उनमें से अधिकांश की स्थिति जस की तस है। मप्र में बैतूल, बालाघाट, छतरपुर, डिंडोरी, दमोह, हरदा, जबलपुर, कटनी, मंडला, नरसिंहपुर, पन्ना, रीवा, सागर, सिवनी, शहडोल, सीधी, सिंगरौली, टीकमगढ़, उमरिया, रायसेन, होशंगाबाद, विदिशा, सतना, इंदौर, रतलाम, सीहोर, बुरहानपुर, आगर-मालवा, अशोकनगर, बड़वानी, भिंड, दतिया, देवास, ग्वालियर, गुना, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, मंदसौर, मुरैना, नीमच, राजगढ़, शाजापुर, श्योपुर, शिवपुरी, उज्जैन, भोपाल, अनूपपुर में 1-1 कृषि कल्याण केंद्र हैं, जबकि छिंदवाड़ा और धार में 2-2 केंद्र हैं। इनमें से कई केंद्रों ने तो गांवों को गोद तक नहीं लिया है। जिन केंद्रों ने गांवों को गोद लिया है उनमें से अधिकांश कागजों पर ही खेती-किसानी सीखा सके हैं।
मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व प्रमुख दो कारणों से है। पहला कृषि क्षेत्र का योगदान मप्र की अर्थव्यवस्था में लगभग 1/4 है। दूसरा ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।
प्रदेश के मॉडल गांवों की कहानी
कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 30 राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के 651 केवीके ने 1,416 गांवों को गोद लिया है। मप्र के 53 कृषि विज्ञान केंद्रों में से किसने कितने गांवों को गोद लिया है इसका आंकड़ा न सरकार के पास है, न विभाग के पास। 'जागत गांव हमारÓ ने कृषि विज्ञान केंद्रों से संपर्क किया गया तो कुछ अधिकारियों का कहना था कि यह ऑफिशियल जानकारी है, वे यह सूचना नहीं दे सकते तो कुछ ने कहा कि इस तरह की जानकारी लेने के लिए उन्हें ई-मेल करना होगा तो कुछ अधिकारियों ने सुनते ही फोन काट दिया। कुछ जगह के फोन ही नहीं मिले।