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झाबुआ में प्रशिक्षण लेकर बन गए उन्नत किसान, करने लगे जैविक खेती

नोमान खान
झाबुआ, समीपस्थ ग्राम सेमलकुडिया (मोहनकोट) के किसान नगला पुत्र नाथा निनामा पहले कपास, मक्का, गेहूं, सोयाबिन इत्यादि की खेती करते थे जिससे फसलों की लागत निकाल पाना कठिन था। वे रेडियो पर नंदाजी, भेराजी समाचार सुनते रहते थे जिससे उन्हें जैविक खेती के लिए प्रेरणा मिली। जड़ी-बूटी औषधि पौधों के नाम लिखकर रखते थे और उसके अनुसार जैविक खेती करने लगे। सबसे पहले उन्होंने इंदौर में 5 दिन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। एक कंपनी में जैविक खेती के लिए प्रचार-प्रसार का कार्य किया। प्रशिक्षण प्राप्त कर जैविक खेती के संबंध में जानकारी हासिल की। 5 वर्ष किसान मित्र के रूप में जैविक खेती के क्षेत्र में कार्य किया। कृषि विभाग द्वारा उन्नात किसान के रूप में उनका चयन किया गया। उन्होंने पेटलावद तहसील में जैविक खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने का कार्य किया।

भोपाल में लिया प्रशिक्षण

झाबुआ जिला मुख्यालय पर आयोजित प्रशिक्षण में भाग लिया जिसमें भोपाल के अधिकारी ने जैविक खेती के लिए फार्म भरवाया। उसके बाद उनके खेत तथा फसल का निरीक्षण किया गया। फिर उन्हें जैविक खेती का प्रमाण पत्र प्रदाय किया गया। उन्होंने भोपाल में आयोजित 5 दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लिया। एक बार शासन के खर्चे से प्रशिक्षण प्राप्त किया। 

एक लाख की अतिरिक्त आमदनी

उद्यानिकी विभाग की सलाह पर वर्ष 2015-16 में वर्मी कम्पोस्ट यूनिट स्थापित की और अमरूद के पौधे लगाए। विभाग से अनुदान पर इलाहाबादी सफेद, लखनऊ-49 अमरूद की जैविक खेती ड्रिप के साथ शुरू की जिससे 1 एकड़ क्षेत्र से 25 से 30 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त होती थी। साथ ही पपीता, गोभी, मिर्च, गेंदा, हल्दी की अंतरवर्तीय फसल ली जिस पर 20 से 25 हजार की लागत आ जाती है और उससे एक लाख की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर लेते हैं।

साल में ले रहे तीन फसल

खेती में घर के ही सदस्य कार्य करते हैं। वे वर्षभर में तीन फसलें लेते हैं और 70 हजार रुपए खेती की लागत आती है और उन्हें 2 लाख रुपए की शुद्ध आय प्राप्त हो जाती है। अब उनके परिवार की आर्थिक स्थिति एवं जीवन स्तर में बदलाव आया है और परिवार के लालन-पालन अच्छी तरह से करने के साथ ही बच्चों की पढ़ाई पर भी ध्यान दे पा रहे हैं।

पेटलावद में हो रहा स्ट्राबेरी का उत्पादन

इधर, पेटलावद क्षेत्र का टमाटर और शिमला मिर्च अन्य देशों तक में निर्यात होता है। क्षेत्र का किसान उन्नातशील व व्यावसायिक खेती की ओर बढ़ रहा है। क्षेत्र के किसानों द्वारा कश्मीर क्षेत्र में उत्पादित होने वाली स्ट्राबेरी का भी उत्पादन किया जाने लगा है। क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। किसानों द्वारा मक्का, कपास की फसल बोई जाती थी, किंतु 25 वर्षों में किसानों द्वारा तरक्की करते हुए गेहूं, चना, तिलहन, दाल, सब्जियों की खेती की जाने लगी है। ग्राम बावड़ी के किसान जितेंद्र पाटीदार ने बताया कि जब उनके खेत पर स्ट्राबेरी की फसल आ जाती है तो वे पेटलावद सहित अन्य जगहों से पहले से आए आर्डरों पर डिलीवरी दे देते हैं। इससे हाथोहाथ स्ट्राबेरी बिक जाती है। अभी स्ट्राबेरी का थोक भाव 150 रुपए प्रति ट्रे (1 किलो 200 ग्राम) बिक रही है। ग्राहक तो खेत में ही आकर ले जाते हैं।

अनुकूल जलवायु: कृषि विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्राबेरी की फसल के लिए जलवायु का शीतल और ठंडा होना आवश्यक है और इसीलिए विशेष रूप से इसका उत्पादन कश्मीर जैसे ठंडे क्षेत्र में होता है, किंतु झाबुआ जिले में पेटलावद के आसपास बावड़ी, बनी, सारंगी व तीतरी क्षेत्र में किसानों द्वारा विशेष व्यवस्था तथा तकनीकों के साथ स्ट्राबेरी फल का उत्पादन किया जा रहा है जिसका सीधा अर्थ यह है कि इस फल के उत्पादन के लिए क्षेत्र की जलवायु उपयोगी साबित हो रही है।

सरकार से दरकार: विदेशों में निर्यात होने वाले स्ट्राबेरी फल जो कि औषधि का भी काम करता है, का उत्पादन करने वाले इस क्षेत्र के किसानों को यदि शासन की ओर से आर्थिक सहायता तथा उन्नात तकनीक व संसाधन मुहैया कराए जाएं तो निश्चित तौर पर स्ट्राबेरी की खेती लाभ का धंध बन सकता है और प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का खेती को लाभ का धंधा बनाने का सपना साकार हो सकता है।

झाबुआ में प्रशिक्षण लेकर बन गए उन्नत किसान, करने लगे जैविक खेती

नोमान खान
झाबुआ, समीपस्थ ग्राम सेमलकुडिया (मोहनकोट) के किसान नगला पुत्र नाथा निनामा पहले कपास, मक्का, गेहूं, सोयाबिन इत्यादि की खेती करते थे जिससे फसलों की लागत निकाल पाना कठिन था। वे रेडियो पर नंदाजी, भेराजी समाचार सुनते रहते थे जिससे उन्हें जैविक खेती के लिए प्रेरणा मिली। जड़ी-बूटी औषधि पौधों के नाम लिखकर रखते थे और उसके अनुसार जैविक खेती करने लगे। सबसे पहले उन्होंने इंदौर में 5 दिन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। एक कंपनी में जैविक खेती के लिए प्रचार-प्रसार का कार्य किया। प्रशिक्षण प्राप्त कर जैविक खेती के संबंध में जानकारी हासिल की। 5 वर्ष किसान मित्र के रूप में जैविक खेती के क्षेत्र में कार्य किया। कृषि विभाग द्वारा उन्नात किसान के रूप में उनका चयन किया गया। उन्होंने पेटलावद तहसील में जैविक खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने का कार्य किया।

भोपाल में लिया प्रशिक्षण

झाबुआ जिला मुख्यालय पर आयोजित प्रशिक्षण में भाग लिया जिसमें भोपाल के अधिकारी ने जैविक खेती के लिए फार्म भरवाया। उसके बाद उनके खेत तथा फसल का निरीक्षण किया गया। फिर उन्हें जैविक खेती का प्रमाण पत्र प्रदाय किया गया। उन्होंने भोपाल में आयोजित 5 दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लिया। एक बार शासन के खर्चे से प्रशिक्षण प्राप्त किया। 

एक लाख की अतिरिक्त आमदनी

उद्यानिकी विभाग की सलाह पर वर्ष 2015-16 में वर्मी कम्पोस्ट यूनिट स्थापित की और अमरूद के पौधे लगाए। विभाग से अनुदान पर इलाहाबादी सफेद, लखनऊ-49 अमरूद की जैविक खेती ड्रिप के साथ शुरू की जिससे 1 एकड़ क्षेत्र से 25 से 30 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त होती थी। साथ ही पपीता, गोभी, मिर्च, गेंदा, हल्दी की अंतरवर्तीय फसल ली जिस पर 20 से 25 हजार की लागत आ जाती है और उससे एक लाख की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर लेते हैं।

साल में ले रहे तीन फसल

खेती में घर के ही सदस्य कार्य करते हैं। वे वर्षभर में तीन फसलें लेते हैं और 70 हजार रुपए खेती की लागत आती है और उन्हें 2 लाख रुपए की शुद्ध आय प्राप्त हो जाती है। अब उनके परिवार की आर्थिक स्थिति एवं जीवन स्तर में बदलाव आया है और परिवार के लालन-पालन अच्छी तरह से करने के साथ ही बच्चों की पढ़ाई पर भी ध्यान दे पा रहे हैं।

पेटलावद में हो रहा स्ट्राबेरी का उत्पादन

इधर, पेटलावद क्षेत्र का टमाटर और शिमला मिर्च अन्य देशों तक में निर्यात होता है। क्षेत्र का किसान उन्नातशील व व्यावसायिक खेती की ओर बढ़ रहा है। क्षेत्र के किसानों द्वारा कश्मीर क्षेत्र में उत्पादित होने वाली स्ट्राबेरी का भी उत्पादन किया जाने लगा है। क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। किसानों द्वारा मक्का, कपास की फसल बोई जाती थी, किंतु 25 वर्षों में किसानों द्वारा तरक्की करते हुए गेहूं, चना, तिलहन, दाल, सब्जियों की खेती की जाने लगी है। ग्राम बावड़ी के किसान जितेंद्र पाटीदार ने बताया कि जब उनके खेत पर स्ट्राबेरी की फसल आ जाती है तो वे पेटलावद सहित अन्य जगहों से पहले से आए आर्डरों पर डिलीवरी दे देते हैं। इससे हाथोहाथ स्ट्राबेरी बिक जाती है। अभी स्ट्राबेरी का थोक भाव 150 रुपए प्रति ट्रे (1 किलो 200 ग्राम) बिक रही है। ग्राहक तो खेत में ही आकर ले जाते हैं।

अनुकूल जलवायु: कृषि विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्राबेरी की फसल के लिए जलवायु का शीतल और ठंडा होना आवश्यक है और इसीलिए विशेष रूप से इसका उत्पादन कश्मीर जैसे ठंडे क्षेत्र में होता है, किंतु झाबुआ जिले में पेटलावद के आसपास बावड़ी, बनी, सारंगी व तीतरी क्षेत्र में किसानों द्वारा विशेष व्यवस्था तथा तकनीकों के साथ स्ट्राबेरी फल का उत्पादन किया जा रहा है जिसका सीधा अर्थ यह है कि इस फल के उत्पादन के लिए क्षेत्र की जलवायु उपयोगी साबित हो रही है।

सरकार से दरकार: विदेशों में निर्यात होने वाले स्ट्राबेरी फल जो कि औषधि का भी काम करता है, का उत्पादन करने वाले इस क्षेत्र के किसानों को यदि शासन की ओर से आर्थिक सहायता तथा उन्नात तकनीक व संसाधन मुहैया कराए जाएं तो निश्चित तौर पर स्ट्राबेरी की खेती लाभ का धंध बन सकता है और प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का खेती को लाभ का धंधा बनाने का सपना साकार हो सकता है।

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