वैज्ञानिकों ने बताया, फसल को शीतलहर और पाले से कैसे बचाएं 

वैज्ञानिकों ने बताया, फसल को शीतलहर और पाले से कैसे बचाएं 

बहराइच, सर्दीयों का मौसम चल रहा है और इसी के साथ दिन-प्रतिदिन तापमान में कमी आ रही है। सुबह और रात के तापमान में काफी गिरावट दर्ज की जा रही है। शीतलहर एवं पाले से फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है और परिणामस्वरूप उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ता है, इसलिए सर्दी के मौसम में फसलों की विशेष देखभाल आवश्यक है। अतः अधिक सर्दी से फसलों को बचाने के लिए कृषकों को अपने प्रयास तेज कर देने चाहिए ताकि संभावित हानि से बचा जा सके।

कृषि विज्ञान केन्द्र, नानपारा, बहराइच-।। के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. के.एम. सिंह  ने खेत में पाले के प्रभाव को कम करने के लिए विस्तारपूर्वक उपाय बताए। उन्होंने बताया कि खेत की उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेतों के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास, मेड़ों पर रात्रि में कूड़ा-कचरा या अन्य व्यर्थ घास-फूस जलाकर धुआं करना चाहिए, ताकि खेत में धुआं हो जाए एवं वातावरण में गर्मी आ जाए। इसके अलावा जरूरत के हिसाब से खेत में ताज़े पानी से सिंचाई करते रहना चाहिए जिससे मिट्टी का तापमान कम न हो साथ ही ओस पर भी नियंत्रण हो सके। क्यूंकि सल्फर (गंधक) से पौधे में गर्मी बनती है, अत: 8-10 किग्रा सल्फर डस्ट प्रति एकड़ के हिसाब से अथवा घुलनशील सल्फर 600 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से पाले के असर को कम किया जा सकता है।

नर्सरी के पौधों एवं सब्जी वाली फसलों को यदि सम्भव हो तो पाॅली हाउस के अन्दर लगाना चहिए, ताकि उन्हे उगने के लिए पर्याप्त तापमान मिल सके एवं पाले के प्रभाव से बच सके। इस सुविधा के अभाव में पौधों को टाट, पॉलिथीन अथवा भूसे से ढक देना चाहिए और वायुरोधी टाटियां को हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगा देना चाहिए। केंद्र की पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ हर्षिता ने बताया कि कम तापमान होने पर पौधे की बाहर व अन्दर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है जिससे वे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। दिसम्बर से जनवरी महीने के बीच आलू, मटर और सरसों जैसी फसलों को झुलसा रोग से सबसे अधिक नुकसान होता है। आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग से बचाव हेतु मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानि दो कि.ग्रा. दवा 1000 ली. पानी में एक हे. के हिसाब से छिड़काव करें।

ठंड बढ़ने के साथ ही चना और मटर जैसी दलहनी फसलों पर भी पाला रोग की आशंका ज्यादा बढ़ जाती है। ओस का प्रभाव दिखने पर गंधक अम्ल के 0.1 प्रतिशत घोल से छिड़काव को इस तरह करें, कि पौधे पूरी तरह भीग जाए। इस तरीके से ओस से होने वाले नुकसान से बचाव के साथ-साथ पौधे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है तथा फसल जल्दी पकती है।  श्रीमती रेनु आर्य ने दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को पाले से बचाने के लिए खेत की मेड़ों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी और जामुन आदि लगाने की सलाह दी जिससे पाले और शीतलहर से फसल का बचाव हो सके। डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की गुड़ाई या जुताई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है।

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