वैज्ञानिकों ने बताया कैसे करें पौधों में कीट का नियंत्रण
शशिकान्त सिंह
बहराइच। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या माननीय कुलपति डॉ बिजेन्द्र सिंह एवं निदेशक प्रसार डॉ ए पी राव के कुशल नेतृत्व में संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, नानपारा, बहराइच के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ के एम सिंह ने बताया कि जब पौधों में कई कीट और रोग के लक्षण एक साथ दिखाई पड़ रहे हो तो उसमे एकीकृत प्रबंधन ज़रूर अपनाएं। फसल चक्र अवश्य अपनाये, जिसमें सोलेनेसी वर्ग की सभी सब्जियाँ अर्थात बैगन, मिर्च, आलू, टमाटर आदि खेत के एक ही स्थान पर कम से कम 2-3 वर्षों तक बिल्कुल ना लगाएं।
भूमि जनित कीट एवं रोग से बचाव हेतु खेत की तैयारी के समय ट्राईकोडेर्मा एवं ब्यूवेरिया बेसियाना 2 किलो + 25-30 किलो सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करें। कीट रोग के शुरुआती लक्षण दिखाई पड़ते ही नीम का तेल 4-5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर हर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। पादप संरक्षण वैज्ञानिक ने बताया कि जब फोमोप्सिस झुलसा के लक्षण दिखाई दे। इसके नियंत्रण हेतु कारबेंडाजिम 50% WP 2 ग्राम प्रति ली. पानी की दर से छिड़काव के साथ ही फल और तना छेदक के नियंतरण हेतु ईमामेक्टिन बेंजोएट 5%SG 0.50 ग्राम प्रति ली. पानी में मिलाकर प्रत्येक पौधे पर छिड़काव करें। केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ वर्मा ने बताया कि छोटी पत्ती रोग के नियंत्रण हेतु ग्रसित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। ज़्यादा बढ़ जाने पर इसका निवारण मुश्किल है। इस रोग के प्रसार को रोकने के लिए टेट्रासाइकिलिन युक्त दवा 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी साथ ही इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL 0.75 मि.ली. प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। डॉ अरुण ने बताया कि अच्छे उत्पादन के लिए घुलनशील उर्वरक एन पी के 0:52:34 को 10 ग्राम व बोरान 0.75 ग्राम प्रति लीटर घोल प्रयोग करें।