सतना का किसान कर रहा संतरें की खेती, हो रहा अच्छा मुनाफा

सतना का किसान कर रहा संतरें की खेती, हो रहा अच्छा मुनाफा

दीपक गौतम
सतना। जिले की बिरसिंहपुर तहसील के पगार कला गांव में उनके पास डेढ़ एकड़ खेत में संतरे के 250 पेड़ लगे हैं। तिवारी के मुताबिक फल आने शुरु हुए हैं। आने वाले समय में संतरे का उत्पादन बढ़ता जाएगा। तेज नारायण कहते हैं, संतरा का पौधा करीब 6 साल में फल देने लायक हो जाता है, जैसे जैसे पेड़ बड़े होते जाएंगे। फल आने की मात्रा बढ़ती जाएगी। पिछले साल कुल 20 कुंटल ही उत्पादन हुआ था, जबकि इस साल जनवरी में ही 40 कुंटल हुआ। यानि एक साल में दोगुना हो गया। एक समय ऐसा आयेगा जब एक पेड़ में ही एक कुंटल तक फल आएंगे। फिलहाल एक पेड़ में 15 से 20 किलो ही फल निकल रहा है।

नागपुर से लाए थे संतरे के 250 पौधे
तेज नारायण के मुताबिक संतरे की बाग में उनका जो खर्च लगना था वो लग गया अब आने दिनों में खर्च कम और बचत ज्यादा होगी। तेज नारायण 7 साल पहले नागपुर से संतरे के 250 पौधे लाए थे। वो बताते हैं, सात साल पहले नागपुर से 35 रुपए प्रति पेड़ के हिसाब से पौधे लाया था। इन्हें तैयार करने में शुरुआत में काफी मेहनत करनी पड़ी क्योंकि पानी की समस्या है। लेकिन बाकी फसलों की अपेक्षा लागत कम औऱ मुनाफा ज्यादा है।
तेज नारायण बताते हैं कि उनके गांव पगार कला की अधिकांश जमीन पथरीली है। उनके खेत से करीब आधा किलोमीटर दूर पर ही पहाड़ है। पहाड़ की तलहटी में करीब 400 एकड़ ज़मीन पथरीली है। जिसमें किसान गेहूं, चना, सरसों, उड़द और धान की खेती करते हैं, लेकिन लेकिन बढ़ती लागत और सिंचाई की समस्या से किसान परेशान हैं।

पानी की कमी ही खेती छोडऩे का बड़ा कारण

उनका कहना है कि यहां ऊपर जमीन तो पथरीली है ही जमीन के नीचे भी पत्थर, जिससे पूरे इलाके में पानी की कमी रहती है, पानी की कमी ही ये खेती छोडऩे का बड़ा कारण भी है। इसमें ही उनका ज्यादा खर्च हो जाता था और फसल से जो मिलता था उससे केवल भोजन हो सकता था। अन्य जरूरतों के लिए सब्जियों से खर्च निकालना पड़ता था।

काम आया पिता का अनुभव
किसान तेज नारायण के पिता रामलाल तिवारी कई दशक पहले नागपुर में संतरे की बाग में काम करते थे, पहली बार करीब 20 साल पहले वो 10 पौधे लाए थे, ये देखने के लिए कि वो यहां की आबोहवा में चलेंगे या नहीं।
तेज नाराणय कहते है, पिता जी जो 10 पौधे लगाए थे उनमें कुछ समय बाद फल आए थे, उनका यह प्रयोग सफल रहा था, जिसके बाद मैंने संतरा को व्यावसायिक खेती के रूप में अपना लिया है। संतरा की खेती की जानकारी भी पिता जी से मिली क्योंकि संतरे के बगीचे में ही काम करते थे। संतरे की दूसरी फसलों की तुलना करते हुए वो कहते हैं, संतरे के पौधे तैयार करने में तो काफी मेहनत लगी। लेकिन गेहूं में तो कई बार एक ही फसल में तीन से पांच सिंचाई करनी पड़ती हैं। यहां जिन किसानों के पास मोटर पंप है तो उनका चल जाता है हमारे पास तब नहीं था इसलिए 1200 रुपये प्रति एकड़ सिंचाई देनी पड़ती थी। यह बात हमेशा परेशान करती थी। अब तो खुद का पंप भी है लेकिन गर्मी में वो भी काम नहीं करता। वो आगे बताते हैं, संतरे के पौधों में अब तो कोई खर्च नहीं है। पांच सालों में खर्च के बात करें तो मुश्किल से 15-20 हजार रुपए ही खर्च किए हैं। जहां तक धान और गेहूं के फसल उत्पादन की बात है तो केवल इतना हो जाता था कि परिवार खा सकता था।

संतरे के साथ करते है और भी खेती
तेज नारायण के पास 3 एकड़ जमीन है, जिसमें से डेढ़ एकड़ में संतरा और बाकी में नींबू और अमरुद के पौधे लगे हैं। संतरे के एक पेड़ से दूसरे पेड़ की दूरी करीब 3 मीटर है। तो बाकी बची जमीन में वो टमाटर और बैंगन समेत दूसरी सब्जियों वाली फसलों की खेती करते हैं। पिछले साल उन्होंने 40 हजार के संतरे के साथ 20 हजार की 20 हजार रुपए की सब्जियां बेची थी, इस साल अभी टमाटर और बैंगन में फल आने शुरु हुए हैं। खाली संतरे उनकी इस साल की आय करीब 1.5 लाख है।

नौकरी छोड़कर अपनाई खेती
तेज नारायण ने नौकरी छोड़ कर खेती को ही जीविकोपार्जन का साधन बना लिया। 12वीं तक पढ़े तेज नारायण की 2004 में शादी हो गई और 2010 में दिल्ली चले गए। जहां एक गियर बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते थे लेकिन खुश नहीं थे। वो कहते हैं, फैक्ट्री में 9000 रुपए की तनख्वाह मिलती थी, नौकरी से मोहभंग हुआ तो 2015 में घर लौट आया। फिर से खेती किसानी का काम शुरू कर दिया।

प्रतिकूल जलवायु में भी कर रहे प्रयास
तेज नारायण के मुताबिक उन्हें संतरे की खेती में धान गेहूं से ज्यादा मुनाफा अभी से मिलने लगा है। वो मध्य प्रदेश के बघेलखंड इलाके में संतरे की खेती का प्रयोग करने वाले पहले किसान भी बन गए हैं। हालांकि उद्यानिकी विशेषज्ञ यहां की जलवायु को संतरे के उत्पादन के लिए उतना अच्छा नहीं मानते हैं।