वन्यप्राणियों को शिकारियों से बचाएगा 'आपरेशन मानसून'
सवा तीन साल में 1645 वन्यप्राणियों का शिकार
जंगल में ऊपर से और हाथियों की मदद से जमीनी स्तर पर नजर रखी जा रही
भोपाल। वर्षाकाल में शाकाहारी वन्यप्राणियों के शिकार की घटनाएं बढ़ जाती हैं। इस स्थिति को देखते हुए मध्य प्रदेश के सभी छह टाइगर रिजर्व और 10 राष्ट्रीय उद्यान में वन्यप्राणियों की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। सभी पार्कों में 'आपरेशन मानसून' शुरू किया गया है, जिसमें नदी-नालों से घिरे पार्क के सुदूर इलाकों में अस्थाई शिविर बनाकर निगरानी की जा रही है। इसमें ड्रोन के जरिये जंगल में ऊपर से और हाथियों की मदद से जमीनी स्तर पर नजर रखी जा रही है। वहीं जलभराव वाले क्षेत्रों में नाव से गश्त करने के निर्देश दिए गए हैं। ज्ञात हो कि प्रदेश में पिछले सवा तीन साल में 1645 वन्यप्राणियों का शिकार हुआ है।
आसपास की बस्तियों के लोग मौके पर फायदा उठाते हैं
इसमें बाघ, तेंदुआ सहित शाकाहारी वन्यप्राणी भी शामिल हैं। वन अधिकारियों का अनुभव है कि वर्षाकाल में शिकार की घटनाएं बढ़ जाती हैं क्योंकि नदी-नालों में उफान आने के कारण वन्यप्राणी पानी से घिर जाते हैं व उन्हें मारना आसान होता है। ऐसे में आसपास की बस्तियों के लोग मौके पर फायदा उठाते हैं। आमतौर पर मांस के लिए शाकाहारी वन्यप्राणियों का ही शिकार किया जाता है, पर कई बार बाघ और तेंदुआ भी शिकार बन जाते हैं।
वन विभाग बढ़ा रहा मुख्बिरों की संख्या
अंधविश्वास के चलते लोग उनके नाखून, मूंछ के बाल, दांत आदि काट लेते हैं। इसलिए जिन संरक्षित क्षेत्रों में बाघ सहित अन्य वन्यप्राणियों की संख्या ज्यादा है, वहां 'आपरेशन मानसून' अभियान शुरू किया गया है। इन जंगलों में ज्यादा खतरा छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जंगलों से नक्सलियों ने कारिडोर विकसित कर लिया है, जो कान्हा से होते हुए अमरकंटक तक जाता है। इस इलाके में वनकर्मियों की पहुंच भी कम ही रहती है। इसलिए इन इलाकों में शिकार की घटनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है। वन विभाग यहां अपने मुख्बिरों की संख्या बढ़ा रहा है।
पानी से घिरे रहने वाले क्षेत्रों में अस्थाई शिविर बनाए गए
कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना, सतपुड़ा और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व सहित राष्ट्रीय उद्यानों में नदी-नालों में उफान आने के बाद लंबे समय पानी से घिरे रहने वाले क्षेत्रों में अस्थाई शिविर बनाए गए हैं। इनमें वनकर्मी मौजूद रहते हैं। इसके अलावा वनकर्मी अपनी-अपनी बीट में पैदल गश्त भी करते हैं। जहां संदेह होता है, वहां वाहन से गश्त की जा रही है। जिसमें सशस्त्र बल तैनात रहता है। नदी या नाले में नाव लेकर गश्ती दल उतरता है, जो पूरे क्षेत्र का बारीकी से मुआयना करता है। जिन क्षेत्रों में हाथी आसानी से जा सकता है, उसमें पार्क के हाथियों की सेवाएं ली जाती हैं, तो रेंज में आने तक ड्रोन भी जंगल में होने वाली गतिविधि पर नजर रख रहे हैं।
इनका कहना है
वर्षाकाल में स्थानीय स्तर पर शाकाहारी वन्यप्राणियों के शिकार की घटनाएं पहले होती रही हैं। हमने सख्ती से ऐसी घटनाओं को रोका है। एहतियात के तौर पर प्रदेश के सभी संरक्षित क्षेत्रों में 'आपरेशन मानसून' चला रहे हैं और पार्क के चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जा रही है।
- शुभरंजन सेन, अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक, वन्यप्राणी मुख्यालय