आलू की उन्नत खेती: जानिए उन्नत किस्मों के बारे में और खेती की विधि

आलू की उन्नत खेती: जानिए उन्नत किस्मों के बारे में और खेती की विधि

दिनेश कुमार कुलदीप
डॉ. एन आर रंगारे
डॉ. मनमोहन सिंह भूरिया
डॉ सौरव गुप्ता, विषय विशेषज्ञ 
जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर
कृषि विज्ञान केंद्र, खंडवा(म.प्र.)

आलू देश की महत्वपूर्ण सब्जी वाली फसलों में से एक है इसकी औसत पैदावार 200-250 कु. प्रति हेक्टयर है, इससे बनने वाली खाद्य सामग्री इसे और अधिक रोचक बना देते है। जैसे- फिगंर चिप्स, (फेंच फ्राईस) आलू चिप्स, मुरब्बा आदि। यदि उत्तम किस्मों और नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाया जाए तो इसकी पैदावार को और अधिक बढ़ाया जा सकता है।

मिट्टी व जलवायुः 

आलू को अच्छी जल निकास वाली कार्बनिक पदार्थ से भरपूर बलूई दोमट मिट्टी में लगाएं। पानी ठहरने वाली क्षारीय मिट्टी में आलू की फसल नहीं उगानी चाहिये। पी.एच.मान-5.2-6.8  आलू की अच्छी बढ़वार के लिए हल्की जलवायु की आवश्यकता होती है। कंद बढ़ने व फूलने के समय क्रमशः 18-20 सेटीग्रेट एवं 20-24 सेटीगे्रट तापमान की स्थिति को अच्छा माना जाता है। अधिक तापमान कंद बनने की प्रक्रिया को बुरी तरह प्रभावित कर देते हैं। 

बीजोपचार

आलू की बीज सरकारी संस्थानों से खरीदें। आलू का बीज तीन चार साल बाद अवश्य बदल दें वरना बीज में विषाणु रोग बढ़ने की संभावना रहती है। अच्छे अंकुरित वाले 30-40 ग्रा. भार का आलू के बीज को बुआई से 10 दिन पूर्व ठंडे गोदाम से निकालें। पहले बीज को 24 घण्टे के लिए प्रोकुलिंग चेम्बर में रखे इसके पश्चात बीज को छाया वाली जगह में रखे। इसी दौरान सड़े हुए व बिना अंकुरित हुये आलू निकाल दें। 

महत्वपूर्ण किस्म एवं संकर किस्म

अगेति किस्म:- कुफरी अलंकार, कुफरी बहार, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी ज्योति।  
मध्य किस्म:- कुफरी बादशाह, कुफरी चमत्कार, कुफरी लालिमा, कुफरी शीतमान, कुफरी  स्वर्णा, कुफरी नवीन, कुफरी सतलज, कुफरी चिप्सोनों-1 कुफारी चिप्सोना-2
पिछेती किस्तः- कुफरी नीलमणी, कुफरी जीवन, कुफरी सिन्दूूरी, कुफरी किसान

बुआई का समयः- 

आलू की बुआई का उचित समय अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा है। यह समय इसलिये उपयुक्त है क्योकिं जिन स्थानों पर पाला दिसम्बर के आखिर माह में या जनवरी के प्रथम माह में पड़ता है। अतः पाला पड़ने तक आलू को बड़ने के लिए पूरा समय मिल जाता है। 

बुआई विधिः

शीत गृहों से कंदिय बीज बुआई से 10-15 दिन पहले प्राप्त कर लेना चाहिये। इन कंदिय बीज को बाल्टी या प्लास्टिक की रैक में फैला देना चाहिए। कंद के आधार पर बुआई हेतु बीज से बीज की दूरी निम्नानुसार होती है।

बीज का आकार      बीज का वजन (ग्रा.)           कंद का व्यास (से.मी.)          रोपण दूरी             कंद की मात्रा (क्वि./ हें. )
वृहत आकार           60-100                         5.0-6.0                              60*25                             25-30
मध्य आकार          25-60                           3.5-5.0                               50*20                            15-20
छोटा आकार          2.5-3.5                         60 *15                                                                      10-15

कंदो को खेत में तैयार क्यारियों की कतार में लगाया जाता है, जो खेत की ढलान के अनुरुप छोटी लंबी होती है। अर्थात कम ढलान कम लंबाई एवं अधिक ढलान में क्यारियों की ज्यादा लंबाई रखनी चाहिये। बंुआई के लिए कतारों को संकरी कुदाली से खोदकर, बीज कंदो में अनुशंसित दूरी पर लगाने के बाद ढंक दें बुआई के तुरंत बाद सिंचाई की जाती है। ताकि जड़ अच्छे से फैले तथा अच्छी उपज प्राप्त हो। 

खाद उर्वरकः 

उचित मात्रा में उर्वरक के साथ आलू का उत्पादन वृहत रुप से बढ़ाई जा सकती है। भूमि तैयार करते समय कम्पोष्ट या एफ.वाय.एम. (गोबर की खाद) का अवश्यक रुप से उपयोग करने से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए आवश्य है। जुताई के समय अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टयर मिलाई जानी चाहिए। इसके साथ 100-150 किलो नत्रजन 80-100 किलो स्फूर एवं 80-100 किलो पोटाश प्रति हेक्टयर आलू की बेहतर उपज के लिए आवश्यक है। बुआई के समय नाइट्रोजन की 2/3 से 3/4 मात्रा एवं फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा डाली जानी चाहिए। कुछ सूक्ष्म तत्व जैसे बोरॅान, जिंक, माॅल्ब्डिेनम , तांबा का भी प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए। 

सिंचाईः

बुआई के समय भूमि में उचित नमी होना आवश्यक है। ताकि जड़े अच्छे से विकसित हो सकें। भूमि में नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। सामान्यतः सिंचाई 7-10 दिन के अंतराल पर फ्लड विधि के द्वारा करनी चाहिए इस प्रकार आलु की फसल में 6-8 सिंचाई की आवश्यकता होती है। आलू की खुदाई करने के 10 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए। जिससे आलू के कंदो का छिलका कठोर हो जाए। 

मिट्टी चढ़ानाः

पौधे में 30-35 दिन पश्चात पहली गुड़ाई करनी चाहिए इस समय तक पौधे 20-30 से.मी. ऊॅचे हो जाते है। इस समय नाइट्रोजन (नत्रजन) की शेष मात्रा दी जानी चाहिए। प्रायः मिट्टी चढ़ाने के दो सप्ताह बाद दूसरी बार भी मिट्टी चढ़ाना चाहिए। मिट्टी चढ़ाने में कंदो की बढ़वार अच्छी होती है। साथ ही वे हरा होने से बच जाते है।

खरपतवार नियंत्रणः

खरपतवार नियंत्रण हेतु 1.00 कि. नाइट्रोकेन अथवा एलाक्लोर की 2 कि. मात्रा प्रति हेक्टयर इस्तेमाल की जानी चाहिए जिससे निंदाई के समय मानव श्रम पर होने वाली लागत से बचा जा सकता है। 

खुदाई उपज एवं भण्डारणः 

जब आलू की पत्तियां सूखने लगे तो आलू की खुदाई करने से 10-15 दिन पूूर्व पौधों की शखाओं को जमीन की सतह से काट देना चाहिए। ताकि कंद के छिलके मोटे हो सकें, खुदाई के बाद कंदो को ढ़ेर बनाकर 15 दिनों के लिए रख देना चाहिए, शीत भण्डारण के लिए तापमान 2-4 सेटीग्रेट होना चाहिए मैदानी क्षेत्रों में अगेती एवं मध्य किस्में से 200-500 क्विंटल/हे. और पिछेती किस्मों से 300-400 क्विंटल/ हे. उपज प्राप्त हो जाती है। 

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