धान की उन्नत खेती: जानिए सही समय और ज्यादा उत्पादन कैसे प्राप्त करें

धान की उन्नत खेती: जानिए सही समय और ज्यादा उत्पादन कैसे प्राप्त करें

भोपाल। भारत में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु आदि कई ऐसे राज्य हैं जहां मुख्य रूप से धान की खेती होती है। झारखंड जैसे राज्य के क्षेत्र में धान की खेती 71 प्रतिशत भूमि पर उगाया जाता है। यहां राज्य की बहुसंख्यक आबादी का प्रमुख चावल है। लेकिन इसके बावजूद धान की उत्पादकता यहां अन्य विकसित राज्यों की तुलना में काफी कम है। धान की खेती के लिए किसानों को कृषि तकनीक का ज्ञान देना आवश्यक है जिससे वो उत्पादकता बढ़ा सकें। धान की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सबसे प्रमुख चीज़ यह भी है कि इसके किस्मों का चुनाव भूमि एवं जलवायु को देखकर उचित तरीके से किया जाए।

खेत की तैयारी 

गर्मी के समय में धान की खेती के लिए 2 से 3 बार जुताई करना चाहिए। साथ ही खेतों की मजबूत मेड़बन्दी भी कर देनी चाहिए। इस प्रक्रिया से खेत में वर्षा का पानी अधिक समय के लिए संचित भी किया जा सकता है। वहीं अगर हरी खाद के रूप में ढैंचा/सनई ली जा रही है तो इसकी बुवाई के साथ ही फास्फोरस का भी  प्रयोग कर लिया जाएगा। धान की बुवाई/रोपाई के लिए एक सप्ताह पूवज़् खेत की सिंचाई कर देना चाहिए। वहीं खेत में खरपतवार होने के बाद इसके पश्चात ही बुआई के समय ही खेत में पानी भरकर जुताई कर दें।

बीज की मात्रा

धान की सीधी बुआई की अगर बात करें तो इसमें बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 40 से 50 किलोग्राम तक होना चाहिए। इसके साथ ही धान की रोपाई के लिए यह मात्रा लगभग 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होना चाहिए। वहीं कई लोग नसज़्री बनाने से पहले बीज का शोधन करते हैं। इसके लिए वो 25 किलोग्राम बीज में 4 ग्राम स्ट्रेपटोसईक्लीन तथा 75 ग्राम थीरम का प्रयोग करके बीज को शोधिक करके बुआई करते हैं।

बुवाई 

धान की सीधी बुवाई किसानों में इन दिनों ज्यादा लोकप्रिय हो रही है और किसान इससे लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं। इस विधि में सबसे महत्वपूणज़् यह होता है की उचित समय पर बुवाई करना। मॉनसून आने के 10 से 12 दिन पूवज़् यानि मध्य जून तक बुवाई कर लेनी चाहिए। यह प्रक्रिया उत्तर और पूरे मध्य भारत में होती है। अगर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य की बात करें तो यहां धान की बुवाई खुराज़् विधि से की जाती है जिसका मतलब है सूखे खेतों में बुवाई।

उर्वरक प्रबंधन

धान की फसल में उर्वरक की मात्रा का प्रयोग काफी आवश्यक होता है। किसान रोपनी के कार्य के बाद अगर इन चीज़ों का प्रबंधन उचित ढंग से करें तो पैदावार अच्छे तरीके से किया जा सकता है। किसान धान की खेती के लिए यूरिया का प्रयोग अधिक मात्रा में करते हैं जिससे उनको नुकसान होता है।

नीचे दिए प्रति एकड़ अनुपात में सभी चीज़ों का प्रयोग करके किसान धान की फसल से लाभ ले सकते हैं।

नत्रजन- 100-120 किग्रा
फॉस्फोरस- 60 किग्रा
पोटाश- 40 किग्रा
जिंक- 25

जिसके लिए 100-130 किग्रा डीएपी, 70 किग्रा एमओपी, 40 किग्रा यूरिया एवं 25 किग्रा जिंक प्रति हेक्टर (चार बीघा) की दर से रोपाई के समय प्रयोग करें तथा यूरिया की 60-80 किलोग्राम मात्रा रोपनी के 4-5 सप्ताह बाद एवं 60-80 किलोग्राम मात्र रोपनी के 7-8 सप्ताह बाद प्रति हेक्टर खेत में प्रयोग करें।

सिंचाई

धान की फसल को फसलों में सबसे अधिक पानी की आवशयकता पड़ती है फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने वाली, बाली निकलने फूल निकलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना अति आवश्यक है।

धान की उन्नत किस्में 

धान की खेती के लिए उसकी किस्मों का चुनाव भी काफी महत्वपूर्ण है। धान की कुछ उन्नत किस्में हैं, जो 90 से लेकर 130 दिनों में तैयार होती हैं।
पूसा-1460
डब्लू. जी.एल.-32100
पूसा सुगंध- 3, पूसा सुगंध- 4
एम.टी.यू.-1010
आई.आर.-64 , आई.आर. -36
धान: डीआरआर धान 310
धान: डीआरआर धान 45
धान: डीआरआर धान 49 

मृदा के अनुसार धान की उपयुक्त प्रजातियां

किस्म का नाम पकने की अवधि (दिनों में) पैदावार (क्विंटल/हैक्टेयर)
पैदावार (क्विंटल/हैक्टेयर)शीघ्र पकने वाली किस्में    
जे. आर. 201 90-95 35-40
बी. वी. डी. 109 75-80 40-45
दंतेश्वरी 100-105 35-40
सहभागी 90-95 40-45

मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में    

महामाया 120 40-45
क्रांति 125 45-50
पूसा सुगंधा 03 120 40-45
पूसा सुगंधा 04 (पूसा 1121) 120 40-45
पूसा सुगंधा 05 (पूसा 2511) 120 40-45
पूसा बासतमी 1509 120 42-45
पूसा बासतमी 135-140 40-45
डब्ल्यू.जी.एल 32100 125 60-65
जे.आर. 353 110-115 25-30
आई.आर.36 115-120 45-50
जे.आर.34 125 45-50
पूसा 1460 120-125 50-55
एम.टी.यू. 1010 110-115 50-55
एम.टी.यू. 1081 115 50-55
आई.आर. 64 125-130 50-55
बम्लेश्वरी 135-140 55-60

संकर प्रजातियां    

जे.आर.एच. 4 100-105 70-75
जे.आर.एच. 5 100 70-75
जे.आर.एच. 8 100-105 65-70
जे.आर.एच. 12 90 65-70
के.आर.एच. 2 135 70
पी.एच.बी. 81 130 75
पी.ए. 6441 130 75