अच्छे उत्पादन के लिए अमरूद की उन्नत खेती, जानिए क्या कहते हैं वैज्ञानिक

अच्छे उत्पादन के लिए अमरूद की उन्नत खेती, जानिए क्या कहते हैं वैज्ञानिक

-दिनेश कुमार कुलदीप, डॉ. एन आर रंगारे

-डॉ. मनमोहन सिंह भूरिया, मनीष कुमार, नीलेन्द्र सिंह वर्मा

-डॉ सौरव गुप्ता

जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर
विषय विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र,खंडवा(म.प्र.)

परिचय  
अमरूद मिर्टेन्सी कुल का पौधा है जो सिडियम वंश के अंतर्गत आता है। इसका वैज्ञानिक नाम सिडियम ग्वाजावा है। इसका उत्पत्ति स्थान उष्ण कटिबंधीय अमेरिका को माना जाता है। अमरुद भारत का एक प्रसिद्ध फल है| अमरूद ताजे रूप में खाने के अलावा कई मूल्यवर्धक उत्पाद जैसे जैम, जैली, आर.टी.एस., आईसक्रीम, चीज, टाफी इत्यादि बनाने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। इसके फलों में पैक्टिन की अधिकता होने के कारण उच्य गुणवत्ता की जैली बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। अमरूद का देश में क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से फलों में चौथा स्थान है|अमरुद की काफी उपयोगिता एवं पोषक तत्व होने के कारण इसको गरीबों का सेव भी कहते हैं|अमरुद स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है इसमें विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है|

अमरूद के लिए जलवायु  

अमरुद को गर्म एवं  शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है| अमरूद की खेती के लिए 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान अनुकूल होता है परंतु अधिक वर्षा अमरुद की खेती के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है|अमरुद की फसल सूखे को आसानी से सहन कर लेती है|तापमान में अधिक परिवर्तन का अमरूद की खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|

अमरूद के लिए मृदा

अमरुद को लगभग सभी प्रकार की मृदा में उगा सकते हैं| परंतु उपजाऊ बलुई दोमट मृदा अमरूद उत्पादन में अच्छी मानी जाती है| अमरूद की खेती 6 से 7.5 पी.एच. मान वाली मृदा में आसानी से की जा सकती है|मृदा का पी .एच.7.5 से अधिक होने पर उखठा रोग की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है|

प्रसारण एवं प्रवर्धन 

अमरूद का प्रवर्धन बीज और वानस्पतिक भाग से किया जा सकता है| परंतु बीज से तैयार पौधे की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है| वह फूल एंव फल आने में समय भी अधिक लगता है अत: वानस्पतिक भाग से तैयार पौधे ही इसके अच्छे उत्पादन के लिए प्रयोग में लाना चाहिए इसके व्यवसायिक प्रवर्धन के लिए  गूटी विधि का प्रयोग किया जाता है|

अमरूद के रोपण का समय

अमरूद के पौधों को लगाने का सही समय जुलाई से अगस्त माह होता है| लेकिन जहां पर सिंचाई का पानी पर्याप्त मात्रा में होता है वहां फरवरी से मार्च में भी लगा सकते हैं|

गड्ढों का आकार 

अमरूद के पौधों को रोपने के लिए 60 x 60 x 60 सेंटीमीटर(लंबाई x चौड़ाई x ऊंचाई) आकार के गड्ढे रोपने के 20 से 25 दिन पहले तैयार किए जाते हैं| गड्ढों को भरने के लिए 15 से 20 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद, 500 ग्राम फास्फोरस, 250 ग्राम पोटाश और 100 ग्राम मिथाइल पेराथिआन मृदा में अच्छी तरह से मिलाकर गड्ढों को सतह से 15 सेंटीमीटरऊपर तक रोपने से 15 दिन पहले भर देते हैं|

पौधों से पौधों की दूरी 

सामान्य तौर पर अमरूद को 5 x 5 मीटर या 6 x 6 मीटर पर लगाते हैं| परंतु सघन बागवानी प्रणाली में अमरुद को 2 x 1.5  मीटर या 3 x 3 मीटर पर लगाकर प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है|

अमरुद में बहार का समय एवं बहार उपचार

अमरुद के पौधे में वर्ष में 3 बार फूल आते हैं| फूल के आने को ही बाहर कहते हैं| मृग बहार (जून-जुलाई) अम्बे बहार (फरवरी-मार्च) तथा हस्त बहार (सितंबर-अक्टूबर) में आती है| परंतु अच्छी गुणवत्ता के फल प्राप्त करने के लिए वर्ष में एक बार लेने की सलाह दी जाती है| वर्षा ऋतु में जो बहार आती हैं उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है|  इसमें रोग एवं कीट का आक्रमण अधिक होता है इसलिए वर्षा ऋतु के फल को ना ले कर शरद ऋतु के फल को लेते हैं क्योंकि इसकी गुणवत्ता अच्छी होती है| वर्षा ऋतु की फसल को रोककर शरद ऋतु की फसल को लेते हैं तो उसे ही फलन या बहार उपचार कहते हैं|

बहार उपचार निम्न प्रकार से करते हैं-

अमरूद के पेड़ों को फरवरी से मई के मध्य तक सिंचाई नहीं दी जानी चाहिए इस प्रकार पेड़ गर्मी के मौसम अप्रैल-मई के दौरान अपने पत्ते गिरा कर आराम करने के लिए चले जाते हैं| इस दौरान वृक्ष अपनी शाखाओं मे खाद्य सामग्री संरक्षण कर लेते हैं| जून के महीने में पेड़ों को खाद देकर सिंचाई की जाती है जिससे 20 से 25 दिनों के बाद पेड़ में विपुल मात्रा में फूल निकलते हैं| और वह सर्दियों के दौरान फल में परिपक्व हो जाते हैं|यूरिया का 10 से 20 % का छिड़काव तथा NAA (100 ppm) के घोल का छिड़काव करने से भी अमरूद के पौधों में आने वाली बहार में फूलों की संख्या अधिक होती है और जिस प्रकार से हम अच्छी गुणवत्ता वाले अमरूद का उत्पादन कर सकते हैं| और बाजार भाव भी हमें अच्छा मिलता है|

अमरूद की प्रमुख किस्में 

भारत में अमरूद की कई सारी किस्में उगाई जाती है परंतु 10 से 12 किस्मों को ही बड़े पैमाने पर उगाया जाता है| इसमें इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49, चित्तीदार, ग्वालियर -27, बेहद कोकोनट, धारीदार, ललित, अर्का मृदुला, एप्पल कलर एवं संकर किस्मों में अर्का अमूल्य प्रमुख है|

इलाहाबाद सफेदा 

फल का आकार मध्यम, गोलाकार एवं औसत वजन 180 ग्राम होता है|फल की सतह चिकनी, छिलका पीला गूदा मुलायम, रंग सफेद एंव मीठा होता है| इस किस्म को अधिक दिनों तक भंडारित कर सकते हैं|

लखनऊ- 49 (सरदार अमरुद)

यह किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय है. सरदार अमरूद का फल आकार में बड़ा और खुरदरा होता है|  गूदा मुलायम, सफेद तथा स्वाद मीठा होता है| इसकी उत्पादन क्षमता 130 से 155 किलोग्राम प्रति पौध प्रति साल है इसमें उखठा रोग कम लगता है|

चित्तीदार

फलों की सतह पर लाल रंग के धब्बे पाए जाते हैं| इसके बीज मुलायम तथा छोटे होते हैं|फल मध्यम, अंडाकार, चिकने हल्के पीले रंग के होते हैं|गूदा मुलायम,सफेद मीठा होता है|

एप्पलकलर

फल गोल, छिलका, गुलाबी या हरे रंग का होता है| फलों का गूदा मुलायम सफेद युक्त होता है|

अर्का मृदुला

फल मध्यम आकार, गूदा मुलायम एवं मीठा होता है| इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है| एवं भंडारण क्षमता भी अच्छी होती है|

अमरूद में सिंचाई 

अमरूद के 1 से 2 वर्ष के पौधों को भारी मृदा में जब लगाया जाता है, तो 10 से 15 दिन के अंदर में और हल्की मृदा में 5 से 7 दिन के अंतर में सिंचाई करना चाहिए|

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

खाद एवं उर्वरक की मात्रा पौधे की आयु के अनुसार दी जाती है जो निम्न प्रकार से है-
 
      पौधे की आयु (वर्ष मे)                     गोबर की खाद(कि.ग्रा.)           नत्रजन(ग्राम)         फास्फोरस(ग्राम)            पोटाश(ग्राम)    
           1                                                  10                                     50                            30                        50    
           2                                                  20                                    100                           60                        100    
           3                                                  30                                    150                           90                        150    
           4                                                  40                                     200                          120                       200    
           5                                                  50                                     250                          150                       250    
           6 वर्ष से ऊपर                                 60                                     300                          180                        300  

जैविक खाद 

जैविक खाद के रूप में अमरूद को 1 किलोग्राम प्रति पौधा नीम की खली, 4 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट एवं 100 ग्राम एजोस्पिरिलम एवं पी.एस.एम. का प्रयोग करने से फलों की गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है|

खाद देने की विधि 

उर्वरकों पौधे की जड़ के आसपास 15 से 20 सेंटीमीटर की गहराई में चारो ओर खाई खोद कर देते हैं| इसमें गोबर की खाद, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा को वर्षा ऋतु के आरंभ में तथा नत्रजन की आधी मात्रा को वर्षा समाप्त के पहले देते हैं|

कटाई छटाई

अमरूद के पौधों को आकार देने के लिए कृतन करना बहुत ही आवश्यक होता है| अमरूद के पौधों को पहले वर्ष से ही साधने और काटने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं| जिसमें पौधे को पहले 60 से 70 सेंटीमीटर तक सीधा बढ़ने देते हैं| इसके पश्चात शीर्ष को काट देते हैं, और 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर 3 से 4 शाखाओ का चुनाव करते हैं| पार्ष शाखाओ को भी निश्चित दूरी से काट देते हैं| इस तरह से पौधों को एक आकार प्रदान करते हैं| बड़े पौधों में सुखी एवं रोग ग्रस्त शाखाओं को अलग कर देते हैं|

अमरूद की उपज 

अमरूद की फलों की उपज फूल आने के लगभग 120 से 140 दिन बाद फल पकने शुरू हो जाते हैं| जब फलों का रंग हरे से हल्का पीला पड़ने लगे तब इसकी तोड़ाई करते हैं| एक पूर्ण विकसित अमरूद के पौधों से प्रतिवर्ष 80 से 100 किलोग्राम तक उपज प्राप्त होते हैं जिनका वजन 125 से 250  ग्राम तक होता है| इसकी भंडारण क्षमता बहुत ही कम होती है इसलिए इसकी प्रतिदिन तोड़ाई करके बाजार में भेजते रहना चाहिए| 

अमरुद के रोग एवं प्रबंधन

उखठा रोग

यह अमरूद का एक विनाशकारी रोग है इस रोग के लक्षण सबसे पहले पौधों के वायविए भाग पर दिखाई देते हैं| इस रोग में पेड़ की पत्तियां भूरे रंग की हो जाती है| पेड़ मुरझा जाता है पेड़ की शाखाएं एक-एक करके सूखने लगती है| यह रोग 7.5 से अधिक पी.एच. मान वाली मृदा में अधिक होता है| इस रोग के नियंत्रण के लिए पेड़ को उखाड़ कर जला दें और गड्ढों को 1 ग्राम वाविस्टीन प्रति लीटर पानी के हिसाब से 20 लीटर से उपचार करें|चाइनीज प्रजाति के अमरुद को मूल के रूप में प्रयोग करें क्योंकि यह काफी हद तक इस रोग से प्रतिरोधी पाया जाता है जैसे कि इलाहाबाद सफेदा एवं लखनऊ-49 

एंथ्रेक्नोज बीमारी 

इस रोग के लक्षण और पत्तियों पर दिखाई देते हैं| इस रोग में फल तथा पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं| जो बाद में काले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं| इस रोग के नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड के 0.3 % घोल का छिड़काव 15 दिन के अंतर में करना चाहिए एवं कार्बेंडाजिम 2-3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से दिसंबर माह में छिड़काव करना चाहिए|

फल चित्ती रोग

इस रोग में फलों पर भूरे और काले रंग के धब्बे बनने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पत्तियों पर भी इसका देखा जा सकता है। अप्रैल से अगस्त महीने में पौधों में यह रोग अधिक पाया जाता है। इस रोग से बचने के लिए प्रति 15 लीटर टंकी मे 30-40 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड मिलाकर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर हर 15 दिनों के अंतराल पर 3 से 4 बार छिड़काव कर सकते हैं।

फल विगलन रोग

इस रोग के होने पर अमरुद के फल गलने लगते हैं, साथ ही सफेद फफूंद की वृद्धि और पत्तियां झुलसने लगती हैं। वर्षा के मौसम में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित फल गिरने लगते हैं। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए 0.2 प्रतिशत डाईथेन जेड- 78 का छिड़काव करें। इसके साथ ही आप 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड से मिट्टी को उपचारित करें  तथा प्रभावित फलों को तोड़ कर नष्ट कर दें।

अमरूद के कीट एवं प्रबंधन

अमरूद की फल मक्खी

फल मक्खी फल की सतह पर गुच्छे में अंडे देती है और इसकी ईल्ली फल के नर्म भाग में घुसकर गूँदे को खाती है| जिससे फल में छेद ही छेद दिखाई देते हैं इसके नियंत्रण के उपाय संक्रमित फल को तोड़कर नष्ट कर देते हैं|  

नियंत्रण के उपाय

प्रकोप से बचाव के लिए कार्बोरील (0.2 प्रतिशत) या इथोफेनप्रोक्स (0.05 प्रतिशत) का फल बनने की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करें। छिड़काव के 15 दिन बाद तक फल की तुड़ाई न करें।

तना छेदक

यह पौधों के तनों और शाखाओं में छेद बनाकर खोखला कर देता है| जिससे पौधों की शाखाएं सूखने लगती है| प्रभावित प्ररोहों पर काले जाले बन जाते हैं। इन जालों में कीड़ों का मल पदार्थ इकट्ठा  होता है। ये इल्लियां इन्ही जालों के अंदर हानि पहुंचाती है।

नियंत्रण के उपाय

इसके नियंत्रण के लिए तार की सहायता से छेद में से कीट को बाहर निकालकर छेद में मिट्टी का तेल भर देते हैं और छिद्रों में पेट्रोलियम या 40 प्रतिशत फार्मलीन डालें चाहिए या पेराडाइक्लोरोबेंजीन का चूर्ण छिद्रों में भरकर उनको चिकनी मिट्टी से बंद कर लें।

अमरूद का मिलीबग कीट

यह एक बहुभक्षी मिलीबग है जो अमरूद के बागान में भारी नुकसान पहुंचा सकता है। मिलीबग का अधिक प्रकोप गर्मी के मौसम में होता है। मिलीबग भारी संख्या में पनपकर छोटे पौधों तथा मुलायम टहनियों एवं पंखुड़ियों से चिपककर रस चूस कर अधिक नुकसान पहुंचाता है तथा पत्तियां सूख कर मुड़ जाती हैं। इससे पौधे कमजोर होने के साथ इसका फलोत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसका प्रकोप जनवरी से मार्च तक पाया जाता है। 

नियंत्रण के उपाय

नियंत्रण हेतु पेड़ के आसपास की जगह को साफ रखें तथा सितंबर तक थाले की मिट्टी को पलटते रहे इससे अंडे बाहर आ जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं। प्रारंभिक फलन अवस्था में अथवा अफलन अवस्था में बूप्रोफेजिन 30 ई.सी. 2.5 मि.ली. या डाइमिथोएट में 30 ई.सी. 1.5 मि.ली. पानी के घोल बनाकर छिड़काव करें।

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