खरीफ की पड़त भूमि पर आलू की अगेती खेती कर अधिक मुनाफा कमायें

खरीफ की पड़त भूमि पर आलू की अगेती खेती कर अधिक मुनाफा कमायें

टीकमगढ़। कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार, वैज्ञानिक डॉ. एस.के. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड़, डॉ. आर.के. प्रजापति, डॉ. आई.डी. सिंह एवं जयपाल छिगारहा द्वारा विगत दिवस ग्राम कंदवा, पहाड़ी खुर्द, धजरई, मांची, विकासखण्ड जतारा में भ्रमण किया गया। भ्रमण के दौरान पाया गया कि खरीफ मौसम में कुछ किसानों के द्वारा बोनी नहीं की गयी है।

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खरीफ में पड़त खेत में आलू की अगेती फसल जो 80-85 दिनों में तैयार हो जाती है ततपश्चात् माह दिसम्बर के मध्य में गेंहूं की पछेती किस्म की बोनी कर भूमि में पर्याप्त नमी अर्थात् प्राकृतिक संसाधनों का फायदा लेकर दोनों फसलों आलू एवं गेंहूं से किसान भाई भरपूर लाभ ले सकते हैं। सब्जियों में आलू महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी उत्पादन क्षमता अन्य फसलों से अधिक है। इसका उपयोग सभी प्रकार की सब्जियों के साथ व एकल रूप में दोनों विधि से किया जाता है इसलिए आलू की मांग वर्ष भर बनी रहती है। इसे सब्जी का राजा भी कहा जाता है। आलू की बुवाई सितम्बर के अंतिम सप्ताह या अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में करके किसान भाई अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। जिले में खरीफ मौसम में कुछ हिस्सों में बोनी नहीं हो पाने के कारण जमीन पड़त रह गयी थी। यदि कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो आलू की अगेती फसल से काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। 

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आलू की किस्में

कुफरी अशोका: इस किस्म के कंदों का रंग सफेद होता है, यह लगभग 75-80 दिनों में तैयार हो जाती है और उत्पादन लगभग 125-130 कु. प्रति एकड़ होती है।

कुफरी सूर्या :- इस किस्म के आलू का रंग सफेद होता है, यह किस्म 75-85 दिनों में तैयार हो जाती है और इसका उत्पादन 120-125 कु. प्रति एकड़ होता है।
कुफरी पुखराज: इस किस्म की फसल 75-80 दिनों में तैयार हो जाती है, इसका उत्पादन लगभग 150-155 कु. प्रति एकड़ होता है।
इन अगेती प्रजातियों की खेती सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह या अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में कर देनी चाहिए तत्पश्चात् दिसम्बर माह में गेहूँ की पछेती प्रजातियों की खेती कर मुनाफा कमाया जा सकता है। अत: किसान भाई पड़त भूमि में आलू की अगेती फसल लेने के पश्चात् गेहूँ की पछेती फसल की बोनी कर सकते हैं।

आलू की बुवाई का तरीका

आलू का बीज दर इसके कंद के वजन, दो पंक्तियों के बीच की दूरी तथा प्रत्येक पंक्ति में दो पौधों के बीच की दूरी पर निर्भर करता है। प्रति कंद 10 ग्राम से 30 ग्राम तक वजन वाले आलू की रोपनी करने पर प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल से लेकर 30 क्विंटल तक आलू के कंद की आवश्यकता होती है। आलू की बुवाई से पहले इसे उपचारित करना बेहद जरूरी है। इसके लिए आलू की बुवाई करने से पहले बीज को कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर 10-15 दिनों तक छायादार जगह में रखें। सड़ेे और अंकुरित नहीं हुए कंदों को अलग कर लें। कतार से कतार की दूरी 50-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि पौध से पौध की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

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खाद और उर्वरक: खेत की जुताई के पश्चात् अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 70-75 कु. प्रति एकड़  की दर से मिला देनी चाहिए। आलू की बेहतर फसल के लिए प्रति एकड़ 60-70 किग्रा. नाइट्रोजन, 35-40 किग्रा. फास्फोरस और 40-50 किग्रा. पोटाश की जरूरत होती है। फास्फोरस व पोटाश की पूरी और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में डालनी होती है। बची हुई नाइट्रोजन को मिट्टी चढ़ाते समय खेत में डाला जाता है। साथ ही फसल बोने के 30-40 दिन बाद जैव उर्वरक स्यूडोमोनास 2 ली. प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करना चाहिए।

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