कृषि वैज्ञानिकों की सलाह: खेतों की नरवाई नहीं जलाए किसान 

कृषि वैज्ञानिकों की सलाह: खेतों की नरवाई नहीं जलाए किसान 

भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिये पराली(नरवाई/पुऔल) नहीं जलाए 

नरसिंहपुर, जिले के किसानों को कृषि विज्ञान केन्द्र नरसिंहपुर के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने हेतु और भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिये पराली(नरवाई/पुऔल) नहीं जलाए। कृषि विज्ञान केन्द्र नरसिंहपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅ. विशाल मेश्राम ने कहा कि नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में सहायक कृषि सहयोगी सूक्ष्म जीवाणु तथा जीव भी नष्ट हो जाते है किसान ही अन्नदाता है, पर्यावरण के संरक्षक है इसलिए नरवाई को जलाने की बजाए उसका अन्य उपयोग करें, जिससे उन्नत खेती, पशु-चारे की उपलब्धता और सभी को स्वच्छ प्राण वायु मिल सकंे।

इस संबंध में केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ. आशुतोष शर्मा ने बताया कि नरवाई का उपयोग कम्पोस्ट/कार्बनिक खाद/केंचुआ खाद बनाने में, मशरूम/पिहरी/खुम्बी उत्पादन में, बायोचार बनाने में, बिजली उत्पादन में फसल अवशेष का उपयोग बीकेट्स बनाने में, फसल अवशेष का बायोफ्यूल एवं बायो आॅयल उत्पादन में प्रयोग, छोटे पशुपालक फसल अवशेष का उपयोग रस्सी/टाट पट्टी, फेंसिंग तैयार करने में, फसल अवशेष का उपयोग बिछावन(मल्चिंग) के लिए करे, फसल अवशेष का उपयोग पैकेजिंग, चावल की भूसी ब्रायलर उत्पादन में, फसल अवशेषों के साथ खेती करें। केन्द्र की वैज्ञानिक डा. निधि वर्मा ने बताया कि नरवाई को जलाने की बाजाए उसे भूमि और पशुचारे में तब्दील करना ज्यादा उपयोगी है। विशेषज्ञों का सुझाव उर्जा उत्पादन तथा कार्ड-बोर्ड और कागज बनाने में किया जा सकता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार नरवाई जलाए बिना उसी के साथ गेहूँ की बूआई की जा सकती है साथ ही जब नरवाई सडेगी तो खाद मे बदल जाएगी और उसका पोषक तत्व मिट्टी में मिलकर गेहूं की फसल को अतिरिक्त लाभ देगा।

उन्होंने कहा कि अब तो ऐसे यंत्र भी उपलब्ध है जो आसानी से ट्रेक्टर में लगाकर खड़े डंठलों को काटकर इकट्ट़ा कर सकते है और उन्हीं में बुआई भी की जा सकती है। दोनो ही विकल्प किसानों के लिये फायदेमंद है। केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ. एस.आर. शर्मा ने बताया कि नरवाई जलाने से वातावरण को चैतरफा नुकसान होता है और जमीन के पोषक तत्वों के नुकसान से साथ प्रदूषण भी फैलता है। ग्रीन हाउस गैसे पैदा होती है, जो वातावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाती है। केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ. विजयसिंह सूर्यवंशी ने जानकारी दी कि खेत में फसल अवशेषों को जलाने से नत्रजन 80 प्रतिशत, फास्फोरस 25 प्रतिशत, पोटाश 20 प्रतिशत और सल्फर 50 प्रतिशत जैसे मुख्य पोषक तत्व एवं सूक्ष्म पोषक तत्व और कृषि सहयोगी सूक्ष्म जीवाणु जल कर नष्ट हो जाते है फसल अवशेषों को जलाने से 70 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साडड, 7 प्रतिशत कार्बन मोनो आक्साइड, 0.66 प्रतिशत मिथेन और 2.1 प्रतिशत नाईट्रोजन आक्साइड गैसे निकलती है जो कि पर्यावरण को प्रदृूषित करती है जिससे गम्भीर बिमारिया फैलती है।

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