...तो बीड़ी के स्वदेशी कुटीर उद्योग पर लग जाएगा ताला

...तो बीड़ी के स्वदेशी कुटीर उद्योग पर लग जाएगा ताला

चार राज्यों की महिलाओं ने कानून के खिलाफ खोला मोर्चा

भोपाल, मोदी सरकार द्वारा एक कानून में किए गए संशोधन से मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के सबसे बड़े स्वदेशी कुटीर उद्योग पर ताला डलने की नौबत आ गई है। इसकी वजह से इस उद्योग के माध्यम से रोजी रोटी कमाने वाले करोड़ों लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा होता नजर आ रहा है। यही वजह है कि अब बीड़ी उद्योग से जुड़ी महिलाओं ने विरोध में मोर्चा खोलना भी शुरू कर दिया है। विरोध के मामले में बिहार, झारखंड, कर्नाटक और तमिलनाडु की 44000 महिला बीड़ी मजदूरों ने रैलियां निकालकर किए गए कठोर प्रावधानों को वापस लेने की मांग की है। दरअसल, सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स (विज्ञापन के प्रतिबंध और व्यापार एवं वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण का विनियमन) एक्ट, 2003 में केन्द्र द्वारा संशोधन कर कई नए कड़े संशोधन प्रस्तावित किए हैं। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा बीड़ी बुंदेलखंड में बनाई जाती है। देश में बुंदेलखंड की पहचान सूखे क्षेत्र से होती है।

आजीविका पर खतरा

बीड़ी बनाने का काम करने वाली महिलाओं द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रस्तावित संशोधनों से बीड़ी को अलग करने की मांग की जा रही है। खास बात यह है कि देश में बीड़ी बनाने का काम 80 लाख से अधिक घरेलू लोगों द्वारा किया जाता है, जिसमें 80 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। नए प्रस्तावित संशोधनों से इन सबकी आजीविका समाप्त होने का खतरा मंडराने लगा है। नए संशोधन कानून बनने पर 200 साल पुरानी भारत में हाथ से तैयार बीड़ी उद्योग,एक स्वदेशी कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है। 

भारत कैसे होगा आत्मनिर्भर

इस उद्योग से फिलहाल देशभर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब तीन करोड़ लोग जुड़े हैं। देश में बहु-पीढिय़ोंवाली महिलाएं घरों में बीडिय़ां बनाने का काम करती हैं। इससे उनके समय का सदुपयोग होने के साथ ही आय भी होती है। यदि इसके नए संशोधनों को लागू किया जाता है तो किसी भी अन्य व्यवहार्य रोजगार के उपलब्ध न होने की वजह से इन महिला बीड़ी मजदूरों पर, जो आत्मनिर्भर भारत की प्रतीक मानी जाती हैं, इनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। 

स्वदेशी उद्योग को बचाइए

बीड़ी मजदूरी से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि कोटपा 2003 के अंतर्गत बीड़ी के लिए अलग से नियम सरकार तय करे। ताकि इस देश के भीतर के, रोजगार पैदा करने वाले, स्वदेशी उद्योग को बचाया जा सके। गौरतलब है कि बीड़ी के कारोबर से देशभर में 80 लाख मजदूरों, पांच लाख पैकर्स और 40 लाख महिला और आदिवासी तेंदूपत्ता तोडऩे का काम करते हैं। इसी तरह से 75 लाख छोटे रिटेलर्स की आजीविका इसी से चलती है।