मऊगंज में लहलहा रहा 'पूसा मंगल' गेहूं

मऊगंज में लहलहा रहा 'पूसा मंगल' गेहूं

एक एकड़ में 22 से 24 क्विंटल उत्पादन की उम्मीद

स्थानीय किसानों के आकर्षण का केंद्र बनी फसल

कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर किया दवा का छिड़काव

dhanajy tiwari
भोपाल/रीवा, उन्नत एवं नई-नई किस्म की खेती-किसानी को लेकर चर्चित प्रगतिशील किसान अनिल कुमार मिश्र एक बार फिर चर्चा में हैं। हम बात कर रहे हैं रीवा जिले की तहसील मऊगंज के ग्राम मऊबगदरा की। किसान ने पहली बार अपने खेत में पूसा मंगल (एचआई 8713) किस्म के गेहूं की बोवनी की है। गेहूं की यह फसल स्थानीय किसानों के आकर्षण का केंद्र बनीं हुई है। पूसा मंगल गेहूं एक हरफनमौला किस्म है जो रोग प्रेतिरोधक होती है। हालांकि इसका कुछ दाना हल्का और कुछ रंग का होता है जिस वजह से यह भद्दा दिखता है। लेकिन इसके पोषक तत्वों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। इसके पौधे की लंबाई 80 से 85 सेंटीमीटर होती है। 120 से 125 दिन में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है। इसकी बोवनी 15 से 25 नवंबर तक उचित मानी जाती है। इसमें 3 से 4 पानी सिंचाई होती है। इसका उत्पादन एक एकड़ में 22 से 24 क्विंटल और हेक्टेयर में इसका उत्पादन 55 से 60 क्विंटल तक होता है। 

फसल लगभग तैयार

किसान   ने 'जागत गांव हमारÓ से चर्चा के दौरान बताया कि 9 नबंवर को पूसा मंगल (एचआई 8713)  किस्म के गेहूं की करीब डेढ़ एकड़ में बोवनी की थी। अब फसल लगभग तैयार हो गई है। भारी मिट्टी होने की वजह से पांच पानी की सिंचाई करनी पड़ी। इस किस्म की पहली बार बोवनी की है। अब फसल को सींचने की जरूरत नहीं है। मार्च के पहले सप्ताह में फसल काटने लायक हो जाएगी। पूसा मंगल (एचआई 8713) गेहूं का बीज मऊगंज कृषि विभाग से लिया था। 

कैसे तैयार हुई फसल

बोवनी के बाद 15-18 दिन में पहली सिंचाई अवस्था-चंदेरी जड़ें निकलते समय, दूसरी सिंचाई 35-40 दिन बाद कल्ले निकलते समय, तीसरी सिंचाई 50-60 दिन बाद गांठें निकलते समय, चौथी सिंचाई 75-80 दिन बाद गेहूं में फूल आने के पूर्व और पांचवीं सिंचाई 95-100 दिन बाद दुग्ध अवस्था में की गई।

गेहूं की खासियत

पूसा मंगल (एचआई 8713)  किस्म के गेहूं  की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी बालियों को पक्षी भी नहीं काट पाते हैं। चूंकि इसकी बालियां जौ की तरह होती हैं, इससे पक्षी भ्रमित हो जाते हैं। इसलिए किसानों को रखवाली नहीं करनी पड़ती है। गौरतलब है कि अन्य फसलों की अपेक्षा जौ की बालियां पक्षी कम काटते हैं। 

खाद का उपयोग

खेत में पहले देसी खाद फिर पूसा मंगल (एचआई 8713) गेहूं की बोवनी के समय डीएपी डाली। फसल उगने के बाद जब पहला पानी दिया तब खरपतवारनाशी वेस्टा दवा का छिड़काव किया। उसके 24 घंटे के अंदर यूरिया और सल्फर मिक्स करके छिड़काव किया। दूसरी बार यूरिया खाद का इस्तेमाल गेहूं के गलेथ अवस्था में आने पर किया। कुल दो बार यूरिया का उपयोग किया।

इल्लियों से बचाव

जैसे ही फसल तैयार होने लगी तभी इल्लियों का प्रकोप बढ़ गया। इससे चिंतित किसान अनिल कुमार ने कृषि विज्ञान केंद्र रीवा की वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. किंजुल्क सी सिंह से सलाह ली। उन्होंने फसल को इल्लियों से बचाने के लिए किसान को दो दवाइयों प्रोपैनो फास और इनडेक्सा कार्ब का छिढ़काव का सुझाव दिया। इससे इल्लियों का पूरी तरह से खात्मा हो गया।

सिंचाई की सुविधा

किसान अनिल अपनी फसल की सिंचाई सोलर पंप से करते हैं। यह वही किसान हैं, जिनके यहां तहसील मऊगंज का पहला सोलर पंप लगा हुआ है। वो बताते हैं कि अगर मौसम साफ रहा तो सुबह छह बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक सिंचाई करते हैं। इनकी फसल की सिंचाई दिन में ही होती है। खेतों को उस हिसाब से बनाया है कि सिंचाई करते समय उसमें बार-बार जाना नहीं पड़ता है।