पीला मोजेक रोग से पपीता की फसल बर्बाद

पीला मोजेक रोग से पपीता की फसल बर्बाद

basant thakur

सागर/ रहली परंपरागत फसल लेने वाले रहली के करीब आधा दर्जन किसानों ने इस बार नवाचार करते हुए गेहूं, चने की जगह पपीता की खेती की थी। शुरुआत में तो खेती ठीक रही, लेकिन इसके बाद वह पीला मोजेक रोग की चपेट में आ गई। इससे पत्ते पीला होने लगे। फल में भी रोग लग गया। इससे अपेक्षा के मुताबिक उत्पादन नहीं हो रहा है। किसानों का कहना है कि पपीता की लागत निकलना ही मुश्किल लग रहा है। किसानों ने कहा कि खेती में उन्हें घाटा जरूर हुआ है, लेकिन उन्हें नवाचार करके जो ज्ञान प्राप्त हुआ उससे आगे फायदा होगा।

प्रति एकड़ 5 लाख की थी उम्मीद

रहली ब्लॉक के कंदला पंचायत के कुमेरिया गांव के किसान जयराम कुर्मी ने बताया कि उन्होंने एक एकड़ में पपीता के एक हजार पौधे लगाए थे। पौधे 30 हजार रुपए में आए थे। 30 हजार की रसयानिक उवर्रक का छिड़काव किया। वहीं 30 हजार में मल्चिंग सहित मजूदरी का खर्च आया है। 30 प्रतिशत पौधों में तो अच्छी फसल आई, लेकिन 70 प्रतिशत पौधे ऐसे रहे, जिन्में प्रति पौधा 40 किग्रा की उम्मीद थी, लेकिन 8 से 10 किग्रा ही उपज हो हुई है। 

निगरानी में करेंगे काम

चनौआ के किसान रमाकांत पटेल, शुभम पटेल के अनुसार हर साल कभी अधिक बारिश तो कभी सूखा व अन्य कारणों से सोयाबीन, गेहूं-चने की फसल प्रभावित हो जाती है। लगातार ऐसा होने से खेती के प्रति मन में निराशा आ गई थी। इसके बाद फलों की खेती पर विचार किया और पपीते की खेती शुरू की। इसमें पीला मोजेक रोग लगने से उपज प्रभावित हुई है। यह पहला साल था। इसलिए उम्मीद के मुताबिक लाभ नहीं हुआ। यदि संभव हुआ तो पूरी ट्रेनिंग व विशेषज्ञों की निगरानी में फिर काम किया जाएगा। इससे फायदा संभव है। 

इनका कहना है
पपीता सबसे कम समय में फल देने वाला वृक्ष है। किसानों ने उत्साह के साथ इसकी खेती की थी। पहली साल अपेक्षाकृत मुनाफा नहीं हुआ। इस पर आगे भी काम किया जाएगा। यह नवाचार था। अपेक्षा अनुसार परिणाम नहीं आए। आगे सफलता की उम्मीद है।
सोमनाथ राय, जिला अधिकारी, उद्यानिकी विभाग, सागर
हमें प्रति एकड़ पांच लाख फायदे की उम्मीद थी, लेकिन लागत ही निकल आए यह मुश्किल लग रहा है। नवाचार के तौर पर की गई पपीता की खेती से घाटा जरूर हुआ, लेकिन हमें सीखना के लिए भी बहुत कुछ मिला है।
जयराम कुर्मी, किसान, रहली ब्लॉक