स्वस्थ भूमि और स्वस्थ शरीर के लिए प्राकृतिक खेती जरूरी
टीकमगढ़, कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ ने विगत दिवस को गाँव मुहारा, जतारा में किसानों / महिलाओं को प्राकृतिक खेती पर डॉ. बी.एस. किरार - प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख, वैज्ञानिक - डॉ. आर.के. प्रजापति, डॉ. एस.के. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड़, डॉ. एस.के. जाटव, डॉ. आई.डी. सिंह, जयपाल छिगारहा ने व्याख्यान दिया।
प्राकृतिक खेती पर जागरूकता के तहत वैज्ञानिकों ने वर्तमान की आवश्यकता बताया क्योंकि वर्तमान में सब्जियों, फलों एवं खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में असंतुलित एवं अंधाधुंध मात्रा में रासायनिक उर्वरक, दवायें एवं शाकनाशी दवायों का प्रयोग किया जा रहा है जिससे मनुष्यों में अत्याधिक बीमारियाँ पनप रही हैं। साथ ही भूमि, जल एवं वायु दूषित होती जा रही है, इन सबका समाधान प्राकृतिक खेती ही है।
बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत, संजीवनी के निर्माण और उपयोग का तरीका
प्रशिक्षण में वैज्ञानिकों द्वारा बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत, संजीवनी के निर्माण और उपयोग का तरीका बताया गया। बीजामृत के घोल से बीजोपचार और घनजीवामृत को गाय के गोबर, मूत्र, गुड़, वेसन एवं पीपल / बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी का मिश्रण बनाकर तैयार किये जाने के पश्चात् खेत में डाला जाता है। जीवामृत को गाय का गोबर, मूत्र, गुड़, वेसन एवं पेड़ के नीचे की मिट्टी को पानी में घोलकर तैयार करने के एक सप्ताह बाद खड़ी फसल में छिड़काव करना या प्रत्येक सिंचाई के साथ देना चाहिए। प्राकृतिक खेती में खेतों की कम जुताईयाँ की जाती है और दो कतारों के बीच में घास-फूस एवं पत्तियों से आच्छादन (मल्चिंग) करना चाहिए और मुख्य फसल के साथ सहायक फसल अंतरवर्तीय फसलें बोना चाहिए और कीट प्रबंधन हेतु नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र एवं अग्नेयस्त्र आदि का घोल तैयार कर फसलों में चूसक एवं काटने वाले कीट प्रबंधन हेतु समय-समय पर छिडकाव करते रहना चाहिए। वैज्ञानिकों द्वारा सलाह दी गयी कि प्रत्येक किसान को अपने कुल रखवा के 10 से 20% तक खेती में प्राकृतिक विधि से सब्जियाँ एवं अनाज का उत्पादन कर अपने परिवार को उत्तम स्वास्थ्य बनाने और शरीर से बीमारियाँ दूर भगाने का प्रयास करना चाहिए इस अवसर पर आजीविका मिशन से अनिल शकवार एवं महिला कृषक श्रीमती शांति साहू, लक्ष्मी कुशवाहा, मीरा, चंदा, आदि उपस्थित रहीं।