प्राकृतिक खेती वर्तमान की आवश्यकता

प्राकृतिक खेती वर्तमान की आवश्यकता

कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा दिनांक 17 दिसंबर 2022 को निवाड़ी विकासखंड के 45 किसानों को प्राकृतिक खेती पर डॉ. बी.एस. किरार प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. आर.के. प्रजापति वैज्ञानिक डॉ. एस.के. जाटव डॉ. आई.डी. सिंह जयपाल छिगारहा एवं उद्यान विभाग से राजू अहिरवार उद्यान विकास अधिकारी ने व्याख्यान दिया । प्रशिक्षण में वैज्ञानिकों ने प्रकृति खेती को वर्तमान की आवश्यकता बताया गया क्योंकि वर्तमान में सब्ज़ियों, फलों एवं खाद्यान्न फसलों के उत्पादन के असंतुलित एवं अंधाधुंध मात्रा में रसायनिक, दवाएं एवं शाकनाशी दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है । जिसमें मनुष्यों में बहुत सी छोटी एवं बड़ी बीमारियां अत्याधिक मात्रा संख्या में पनप रही है साथ ही भूमि, जल एवं वायु दूषित होते जा रहे है इन सब का समाधान प्राकृतिक खेती और जैविक खेती है । प्रशिक्षण में वैज्ञानिकों ने बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत, एवं संजीवक के निर्माण और उपयोग का तरीक़ा बताया गया । 
बीजाम्रत के घोल से बीजोपचार किया जाता है और घनजीवाम्रत में गाय के गोबर, मूत्र, गुड, बेसन एवं पीपल/बरगद के पेड़ के नीचे की 250 ग्राम मिट्टी का मिश्रण बनाकर खेत में डालना और जीवाम्रत गाय का गोबर, मूत्र, बेसन एवं पेड़ के नीचे की मिट्टी को पानी में घोलकर एक सप्ताह बाद खड़ी फ़सल में छिड़काव करना या सिंचाई के साथ देना चाहिए । प्राकृतिक खेती में खेतों की कम जुतईयाँ की जाती है और दो कतारों के बीच में घास-फूस एवं पत्तियों से आच्छादन (मुल्चिंग) करना चाहिए और मुख्य फ़सल के साथ सहायक फसल अंतर्वर्तीय फसलें बोना चाहिए और कीट प्रबंधन हेतु नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र एवं आग्नेयास्त्र आदि घोल बनाकर फसलों रस चूसक एवं काटने वाले कीटों के प्रबंधन हेतु समय समय पर छिडकाव करते रहना चाहिए । प्रत्येक किसान को कुल रकवा के 10-20% तक भूमि का प्राकृतिक खेती से सब्ज़ियों एवं अनाज का उत्पादन कर अपने परिवार को उत्तम स्वास्थ्य बनाए और शरीर में बीमारियां दूर भगाये । प्रशिक्षण में रबी सब्ज़ियों में लगने वाले कीट ब्याधियों के प्रबंधन की जानकारी दी गयी ।

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