दाल-सोया और कपास उद्योग पर मंडी टैक्स की मार 

दाल-सोया और कपास उद्योग पर मंडी टैक्स की मार 

भोपाल। प्रदेश सरकार की घोषणाएं अधूरी रहने से उद्योगों का भरोसा टूट रहा है। मंडी टैक्स से बेहाल प्रदेश के दाल, सोयाबीन और कपास उद्योगों के सामने मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री भी राहत देने का ऐलान कर चुके हैं। ऐलान एक-दो नहीं, बल्कि पांच बार हुआ। हालांकि घोषणाओं का गर्भकाल नौ माह में भी पूरा नहीं हुआ। 


अप्रैल में पहली घोषणा


अप्रैल में पहली घोषणा हुई थी, लेकिन कागज पर आदेश की डिलीवरी अब तक नहीं हो सकी है। सरकार के रवैये से प्रदेश के उद्योग हताश हैं। उत्पादन और कारोबार प्रभावित होता देख निराश उद्यमी पड़ोसी राज्यों में पनाह ले रहे हैं।


70 पैसे प्रति सैकड़ा 


मप्र में मंडी शुल्क की दर 1.70 प्रतिशत यानी एक रुपए 70 पैसे प्रति सैकड़ा है। उद्योगों को कृषि उपज खरीदी पर यह शुल्क चुकाना होता है। दाल मिलें, कपास और सोया प्रोसेसिंग उद्योग इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। 


देश आत्मनिर्भर नहीं 


पड़ोसी राज्यों में मंडी शुल्क की दर 0.50 से 0.80 प्रतिशत है। यानी 50 पैसे से 80 पैसे तक सीमित है। इतना ही नहीं, मप्र अपनी उपज पर नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से या विदेश से आने वाले उत्पाद पर भी मंडी टैक्स वसूलता है। दालों के मामले में देश आत्मनिर्भर नहीं है।


प्रदेश सरकार भी वाकिफ


विदेश व अन्य प्रदेश से आयातित दलहन पर दाल मिलों को तमाम टैक्स देने के बाद दोबारा ये शुल्क प्रदेश में चुकाना होता है। मंडी शुल्क की मार से प्रदेश सरकार भी वाकिफ है। कम से कम तीन बार इंदौर में ही कृषि मंत्री कमल पटेल मंडी शुल्क में राहत देने की घोषणा कर चुके हैं। दो बार मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों के सामने इसकी घोषणा की। पहली घोषणा को नौ महीने बीत चुके हैं, लेकिन सरकारी ढिठाई ऐसी कि आदेश आज तक जारी नहीं हुआ।

हर मंच से घोषणा


25 अप्रैल 2022: इंदौर में दाल मिल एसोसिएशन की वार्षिक बैठक हुई। अतिथि कृषि मंत्री कमल पटेल मौजूद। उद्योगों के सामने कृषि मंत्री ने की घोषणा, मंडी शुल्क में दी जाएगी राहत।


9 अक्टूबर 2022: दि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) द्वारा इंटरनेशनल सोया कानक्लेव आयोजित। ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में कानक्लेव के मंच से कृषि मंत्री कमल पटेल का ऐलान, सोया उद्योग परेशान न हो, सप्ताहभर में मंडी शुल्क में राहत देने का निर्णय लेगी सरकार।


15 दिसंबर 2022: भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से आल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के पदाधिकारियों की भेंट। मुख्यमंत्री ने की घोषणा, मंडी में दी जाएगी छूट।


17 दिसंबर 2022: दाल उद्योगों के गढ़ कटनी में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने की घोषणा, दलहन पर मंडी टैक्स से राहत देगी सरकार।


दो रुपए महंगी प्रदेश की दाल


प्रदेश में 700 दाल मिलें हैं। सबसे ज्यादा दाल मिलें इंदौर और कटनी में हैं। दोनों शहरों में 145 से 150 तक दाल मिलें इस समय चल रही हैं। दाल मिल संचालकों के अनुसार प्रदेश को दाल खरीदने के लिए चना राजस्थान से तुवर या अरहर कर्नाटक व विदेश से और अन्य दलहन भी आयात करना होता है। अन्य प्रदेशों और विदेश की उपज पर भी सरकार मंडी टैक्स लेती है। 


मिलों ने उत्पादन 40 प्रतिशत घटाया 


स्थानीय उपज से बनने वाली दाल की लागत मप्र प्रदेश की मिलों में अन्य प्रदेशों की तुलना में दो रुपए क्विंटल बढ़ जाती है, जबकि अन्य राज्य और विदेश से आयातित दलहन से दालों की लागत इससे भी ज्यादा महंगी होती है। इसका असर ये होता है प्रदेश की दालें महंगी होने के कारण बाहर के बाजार में प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक पातीं। महाराष्ट्र, गुजरात और आसपास की मिलें अपनी दाल मप्र के बाजार में बेचती हैं। बड़े टैक्स का असर है कि मिलों ने उत्पादन 40 प्रतिशत तक घटा दिया है।


मोघे ने लिखा था सीएम को पत्र


मंडी टैक्स से परेशान निमाड़ की कपास मिलों ने 11 अक्टूबर से काम बंद कर दिया था। समर्थन में भाजपा के पूर्व सांसद कृष्णमुरारी मोघे भी उतरे। उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख मंडी टैक्स में राहत देने की मांग की थी। उन्होंने लिखा था रुई की एक गांठ बनाने में गुजरात और महाराष्ट्र में 100 रुपये टैक्स का भार आता है। मप्र में 600 रुपये टैक्स का भार आता है। प्रतिस्पर्धा में यहां के उद्योग पिछड़ रहे हैं। 200 जिनिंग फैक्ट्रियां गुजरात या महाराष्ट्र में शिफ्ट हो चुकी हैं।


इनका कहना है


दाल उद्योग शुल्क माफी नहीं मांग रहा, बल्कि अन्य प्रदेशों के समान टैक्स को युक्तियुक्त करने की मांग की। 2019 तक राहत मिलती थी। हैरानी है कि मंत्री की घोषणा के नौ महीने बाद भी आदेश नहीं हुआ। हर दाल मिल कम से कम 50 लोगों को सीधे रोजगार देती है। मिलें उत्पादन घटा रही हैं। कुछ महाराष्ट्र, गुजरात की सीमा पर जा रही हैं।
-सुरेश अग्रवाल, अध्यक्ष आल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन

सोया उद्योगों ने समस्या बताई थी तो कृषि मंत्री ने कानक्लेव के मंच से मंडी शुल्क में राहत देने का ऐलान किया था। आदेश आज तक जारी नहीं हुआ। मप्र सोया प्रदेश कहा जाता है, लेकिन सोया उद्योग भारी करों का सामना कर रहा है। हमारे यहां उत्पादन लागत बढ़ रही है। महाराष्ट्र जैसे राज्य के उद्योगों को इसका लाभ मिल रहा है।
-डीएन पाठक, कार्यकारी निदेशक, दि सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया

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