पीली क्रांति की ओर अग्रसर मध्य-प्रदेश

डाॅ. सत्येन्द्र पाल सिंह
प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, शिवपुरी (म. प्र.)
चारो ओर खेतों में लहलहाती सरसों की फसल और खिलखिलाते पीले फूल बरबस ही हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। शिवपुरी जिले मंे इन दिनों ऐसा नजारा जिधर नजर दौड़ाओं उधर खेतों में दिखाई दे रहा है। इस बार ऐसा इसलिए हुआ है कि जिल में बढ़े पैमाने पर किसानों ने रबी मौसम में चना और गेहूं की तुलना में सरसों की खेती को अधिक प्राथमिकता दी है। सरसों की खेती की तरफ किसानों के रूझान के पीछे गत् वर्ष सरसों की कीमतों का बहुत अच्छा भाव मिलना प्रमुख कारण रहा है। गत् वर्ष भारत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से लगभग दूनी कीमतों पर फसल कटाई और गहाई के समय ही किसानों की सरसों की बिक्री हो गई थी। वर्तमान में भी सरसों, तेल और सरसों खली की कीमतें काफी अच्छी चल रही हैं।
विगत वर्षों तक शिवपुरी जिले में लगभग 40 हजार से 50 हजार हैक्टेयर में ही किसान सरसों की खेती करते थे। परंतु इस वर्ष जिले के लगभग सभी आठों विकासखण्डों में 1.25 लाख हेक्टेयर से लेकर 1.40 लाख हैक्टेयर भूमि पर किसानों द्वारा सरसों की बुआई की गई है। जो कि अब तक का सर्वाधिक रिकार्ड है। सरसों की फसल को बढ़ावा देने के लिए विगत् एक दशक से अधिक समय से लगातार भारत सरकार द्वारा संचालित तिलहन विकास योजना के तहतः कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा अथक प्रयास किये जा रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा प्रथम पंक्ति तिलहन प्रदर्शनों के अंर्तगत चयनित किसानों के यहां उन्नत किस्मों और वैज्ञानिक तरीके से सरसों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए प्रदर्शन, प्रशिक्षण आदि कार्य क्रम संचालित किए जा रहे हैं। जिसके चलते किसानों में जागरूकता पैदा हुई और सरसों की खेती का रकबा बढ़ने के साथ ही उनके उत्पादन में वृद्धि दर्ज की जा रही है।
इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅक्टर सत्येन्द्र पाल सिंह ने बताया कि सरसों की खेती में कम लागत के साथ कम बीज, कम खाद एवं कम पानी की आवश्यकता होती है। इसके चलते किसानों के लिए सरसों की फसल एक लाभकारी खेती कही जा सकती है। शिवपुरी जिले में वर्षा आधारित खेती के चलते रबी मौसम में सरसों की खेती एक अच्छा विकल्प सिद्ध हो रही है। सरसों के तेल के साथ ही उसकी खली और फसल की कटाई उपरांत खेत में शेष रह जाने वाली उसकी लकड़ी और तूरी भी अब अच्छी कीमत पर बिक जाती है। डाॅ. सिंह का कहना है कि सरसों की खेती के साथ मधुमक्खी पालन भी व्यापक पैमाने पर किया जा सकता है। जिसमें मधुमक्खी परागण का कार्य करके सरसों का उत्पादन बढ़ाने में भी सहयोग करती हैं। साथ ही शहद और मोम आदि उत्पादों की भी अतिरिक्त रूप से प्राप्ति हो जाती है।
सरसों उत्तर भारत की एक प्रमुख तिलहन फसल है। देश के सरसों उत्पादन में मध्य प्रदेश 11.38 प्रतिशत भागीदारी के साथ तीसरे स्थान पर आता है। लेकिन उत्पादकता कम होने के कारण प्रति हैक्टर उत्पादन काफी कम प्राप्त होता है। सरकारों की योजनाएं और वैज्ञानिकों के तकनीकी प्रयासों से इस उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। यदि सही दिशा में प्रयास किये जायें तो मुमकिन हो कि मध्य प्रदेश देश का अग्रणी सरसों उत्पादक राज्य बनकर उभर सकता है। साथ ही देश को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने के सपने को पूरा करने मेें अपना अमूल योगदान दे सकेगा।