दम तोड़ रहे हथकरघा उद्योगों के अच्छे दिन

दम तोड़ रहे हथकरघा उद्योगों के अच्छे दिन

रफी अहमद अंसारी

बालाघाट। जिले का हथकरघा उद्योग कभी प्रदेश में अपना अलग मुकाम रखता था, मगर समय की आंधी ने इसे पस्त कर दिया। अब फिर इसमें जान फूंकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फार लोकल मिशन के तहत इसमें नवाचार किया जा रहा है। दम तोड़ रहे हथकरघा उद्योग को संवारने के लिए आदिवासी संस्कृति का सहारा लिया जा रहा है। हथकरघा से बनी साडिय़ों में गोंडी चित्रों के नए रंग भरे जा रहे हैं। इससे पहले बाजार में दुपट्टों को भी ऐसे ही चित्रों से सजाकर उतारा गया था। हथकरघा विभाग को उम्मीद है कि साडिय़ों को भी लोग हाथोंहाथ लेंगे। इस काम के लिए महाकोशल के बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जिले के 50 चित्रकारों का चयन किया गया है।

चित्रकारों को मिलेगा काम: अगर सब ठीक-ठाक रहा तो 350 बुनकर परिवारों को तो संजीवनी मिलेगी ही। बेकार बैठे चित्रकारों को भी काम मिलेगा। दरअसल, बुनकर हथकरघा से सादी साड़ी बनाएंगे। जिस पर चित्रकार गोंडी चित्र बनाकर उसे आकर्षक बनाने का काम करेंगे।

इस तरह तैयार होती है साड़ी: दो दिन में हथकरघा से तैयार हो जाती है। चित्रकारी में आठ दिन लगते हैं। बुनकर को इससे 400-600 रुपए मजदूरी तक मिल जाती है और चित्रकार दो से ढाई हजार रुपए।
रंगीन साड़ी - चार-पांच दिन में हथकरघा से तैयार होती है। चित्रकारी में आठ दिन लगते हैं। बुनकर को 600-1400 रुपए तक मजदूरी मिल जाती है और चित्रकार को दो से ढाई हजार रुपए।

इनका कहना है
हथकरघा विभाग द्वारा शुरू किया नवाचार न केवल बुनकरों के काम को लोगों तक पहुंचाएगा, बल्कि गोंडी कला-संस्कृति को सहेजने के साथ उसे प्रसारित करेगा। बुनकरों के साथ गोंडी चित्रकारों को रोजी-रोजी का नया साधन मिलेगा। सैकड़ों लोग आत्मनिर्भर बनेंगे।
- विनायक मार्को, सहायक संचालक, हथकरघा विभाग, वारासिवनी