खेतों में नरवाई जलाने से खेतों की उर्वरता होती है नष्ट
सीहोर, खेतों में नरवाई जलाने से मिट्टी की उर्वरता पर नष्ट होती है। इसके साथ ही नरवाई की आग से मकानों,खलिहानो में अग्नि दुर्घटना की संभावना बनी रहती हैं। नरवाई के धुएं से उत्पन्न कार्बन डाई ऑक्साइड से वातावरण का तापमान बढ़ने से प्रदुषण में वृद्धि होती हैं, जिससे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पडता हैं। खेत की उर्वरा परत लगभग 6 इंच ऊपरी सतह पर ही होती हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के खेती के लिये लाभदायक मित्र जीवाणु उपस्थित रहते हैं। नरवाई जलाने से ये जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति को नुकसान होता हैं और धीरे-धीरे भूमि बंजरता की ओर बढ़ने लगती हैं।
कृषि विभाग के उप संचाल श्री आर.एस.जाट ने जानकारी दी की नरवाई न जलाने एवं उसके स्थान पर रोटावेटर चलाकर नरवाई मिट्टी में मिला देनी चाहियें, जिससे नरवाई की कम्पोस्ट खाद तैयार हो जायेगी। नरवाई को खेत से अलग कर भू-नाडेप, डिकम्पोजर एवं वर्मी कम्पोष्ट द्वारा खाद जैविक खाद बनाया जा सकता हैं। गत 5 वर्षो से नरवाई न जलाने एवं उसके स्थान पर उचित उपाय अपनाने तथा नरवाई जलाने पर आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत वैधानिक कार्यवाही के संबंध में आदेश दिये जाते रहे हैं।
इस वर्ष इस कार्य को एक अभियान के रूप में चलाने के लिए विकासखंड स्तर पर पंचायत वार अधिकारी, कर्मचारी की टीम गठित की गई हैं जो किसानों को गांव-गांव जाकर नरवाई न जलाने के लिये सलाह दे रहे हैं। नरवाई न जलाने के लिये गेंहूँ एवं चना के पंजीयन केन्द्रो, पंचायत स्तर पर आयोजित ग्रामसभाओं में, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय, सेवा सहकारी समितियां एवं ग्राम पंचायत स्तर पर संकल्प पत्र भरवाये जा रहे हैं। सभी किसानों से अपील हैं कि, गेंहूँ कटाई के पष्चात् लोकहित एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु नरवाई न जलायें।