सरसों के साथ बरसीम की बोवनी किसानों की आय दोगुनी

सरसों के साथ बरसीम की बोवनी किसानों की आय दोगुनी

अवधेश डंडोतिया
मुरैना, सरकारें खेती से किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य पर सालों से काम कर रही हैं, लेकिन मुरैना के आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र ने सरसों की खेती से किसानों की इनकम दोगुनी करके भी बता दी है। इसके लिए सरसों के खेतों में बरसीम के बीज की बोवनी कराई गई। पिछले तीन साल से सरसों के साथ बरसीम बीज की खेती करने वाले किसानों ने केवल सरसों की खेती करने वालों से लगभग दोगुनी आय की। इसलिए इस बार ऐसे किसानों की संख्या बढ़ गई है। मुरैना आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र ने पहले तो अपने अनुसंधान वाली जमीन पर सरसों के साथ बरसीम की खेती का प्रयोग किया। 
दोनों फसलों की पैदावार के परिणाम अच्छे आने के बाद, कृषि अनुसंधान केंद्र ने किसान फस्र्ट योजना के तहत जिले के हड़बांसी, साटा, बरौली और लालबांस गांव के किसानों के खेतों में सरसों के साथ बरसीम की फसल भी करवाई। इन गांवों के किसान बीते तीन साल से एक खेत में दो फसलें ले रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार एक बीघा जमीन में चार से साढ़े चार क्विंटल सरसों निकलती है, जो 4500-5000 रुपए क्विंटल के भाव बिकती  है। यानी एक बीघा जमीन में 20 से 22 हजार रुपए की सरसों पैदा होती है। इसी एक बीघा खेत में डेढ़ से दो क्विंटल बरसीम का बीज पैदा होता है, जिसका भाव 13000 रुपए क्विंटल है। यानी एक बीघा में 18 से 26 हजार तक का बरसीम बीज पैदा हो जाता है। 

बरसीम मुनाफे की खेती

बरसीम बीज की खेती के लिए कोई अलग जमीन नहीं चाहिए, किसानों को अतिरिक्त जुताई का खर्च नहीं उठाना पड़ता। बस एक बीघा में 20 से 25 किलो यूरिया और सरसों की कटाई के बाद एक सिंचाई की जरूरत होती है। इस अतिरिक्त खर्च में सरसों के खेतों में सरसों से ज्यादा बरसीम बीज की खेती से आय होती है।

बरसीम के बीजों की खेती

सरसों के पौधे की लंबाई पांच फीट या इससे ज्यादा भी हो जाती है और बरसीम का पौधा डेढ़ से दो फीट लंबा ही होता है। सरसों के बीज की बोवनी दूर-दूर होती है। सरसों के पौधे जब एक-एक फीट के हो जाते हैं तब, सिंचाई से पहले इसी खेत में बरसीम का बीज फेंककर (बाजरा की तरह) बोया जाता है। सरसों के पौधे ऊपर बढ़ते जाते हैं और उनके नीचे बरसीम की फसल पनपती रहती है। सरसों की फसल कटने के 20 से 25 दिन बाद बरसीम की फसल कटने पर आ जाती है। सरसों की तरह बरसीम की बालियों से भी दाने निकलते हैं। बरसीम की फसल की एक बार छंटाई होती है, जिससे मवेशियों को हरा चारा निकलता है। इसके बाद बालिया आना शुरू हो जाती हैं।

चना-धना की जुगलंबदी ने कीटों से बचाया 

कृषि अनुसंधान केंद्र ने कुछ गांवों में चना के साथ धनियां की फसल किसानों से करवाई है। इसके भी कई लाभ किसानों को हुए हैं। चना की फसल में इल्ली रोग ज्यादा लगता है जो धनिया की खुशबू के कारण नहीं लगा। यानी चना के साथ हुए धना की फसल ने कीटों का प्रकोप खत्म कर दिया। इतना ही नहीं, एक बीघा खेत में 10 से 12 हजार रुपए के धनिया की पैदावार किसानों को हुई है। चने की फसल भी अच्छी है और उससे भी 15 से 18 हजार तक की आय किसानों को प्रति बीघा पर होगी।

इनका कहना है

मुरैना जिले में अधिकांश किसान अकेली सरसों की फसल करते हैं। हमने पायलट प्रोजेक्ट के तहत पिछले साल चार गांवों में सरसों के साथ बरसीम की खेती करवाई, जिससे किसानों की आय दोगुनी हुई। इस साल भी इन गांवों में सरसों के साथ बरसीम बीज की खेती हो रही है। इस फसल में कोई अतिरिक्त मेहनत या जमीन नहीं लगती, यह किसानों के लिए अच्छी बात है। बरसीम बीज की मांग भी बहुत है, इसलिए ऊंचे दामों में बिकता है।
डॉ. संदीप सिंह तोमर, वैज्ञानिक, कृषि अनुसंधान केंद्र मुरैना