कृषि वैज्ञानिक ने बताए पाले से फसलों के बचाव के उपाय

कृषि वैज्ञानिक ने बताए पाले से फसलों के बचाव के उपाय

anil dubey
सागर, वर्तमान में शीतलहर तथा अधिक ठंडी के कारण पाला पडऩे की संभावना एवं उससे बचाव के उपाय यहां पर जिले के किसान भाइयों को दी जा रही है। जिसे अपनाकर काफी हद तक फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं। विगत दो-तीन दिनों से लगातार उत्तर एवं पश्चिम से ठंडी हवाएं एवंं बर्फबारी के चलते तापमान में गिरावट होने के कारण फसलों एवं उद्यानिकी फसलों पर पाला पडऩे की संभावना बढ़ गई है। जो आगे भी बने रहने की संभावना है।

पाला मुख्यत: दो तरह का होता है पहला समानान्तर पाला एवं दूसरा विकिरण द्वारा पाला। शीतलहर में ठंडी हवाएं चलने के कारण तथा विकिरण पाला तब पड़ता है जब हवा शांत हो तथा आसमान बिल्कुल साफ हो उस दिन पाला पडऩे की संभावना रहती है। पाला तब पड़ता है जब तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होते हुए शून्य डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है तब पाला पड़ता है। ऐसी अवस्था में वायुमंडल के तापमान को शून्य डिग्री से ऊपर बनाए रखना जरूरी हो जाता है। पाले की अवस्था में पौधों के अंदर का पानी जम जाने से तथा उसका आयतन बढऩे से पौधों की कोशिकाएं फट जाती हैं जिसके कारण पत्तियां झुलस जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होने से फसल में फल और फूल नहीं लगते तथा उपज बुरी तरह प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्त तापमान कई बार शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे भी कम हो जाता है तो ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें पौधों पर जम जाती हैं जिसके कारण पौधों तथा उनकी फलियों और फूलों और पत्तों पर बर्फ जमा होने से ज्यादा नुकसान होता है।

यदि पाला की यह अवस्था अधिक देर तक बनी रहे तो पौधे मर भी सकते हैं। पाला विशेषकर दिसंबर तथा जनवरी के महीने में ज्यादा पडऩे की संभावना रहती है। पाला के प्रभाव से प्रमुख रूप से उद्यानिकी फसलें जैसे टमाटर, बैंगन, आलू, फूलगोभी, मिर्च, धनिया, पालक तथा फसलों में प्रमुख रूप से मसूर चना तथा कुछ मात्रा में गेहूं आदि के प्रभावित होने की ज्यादा संभावना रहती है विशेषकर जब यह फूल और फल की अवस्था में हो। अत: पाले से बचाव के लिए यहां किसान भाइयों को कुछ विशेष उपयोगी सलाह दी जाती हैं जिससे कि समय रहते इसे अपनाकर काफी हद तक अपनी फसलों को बचा सकंे।