भंग गौ सदनों की बहाली से 60 फीसदी गायों को मिल जाएगा बसेरा

भंग गौ सदनों की बहाली से 60 फीसदी गायों को मिल जाएगा बसेरा

anand shukla

भोपाल। गौ संरक्षण और संवद्र्धन के संबंध में मेरा संदेश सभी के लिए यही है कि-हम सभी भारतवासी अपने पूर्वजों की गौ पालन की पारम्परिक अभिरुचि को वर्तमान में पुन: जागृत करें। गायों की उपेक्षा न करें। गायों को वध के लिए बेचना महापाप है। गौ पालन-गौ संरक्षण के लिए हमें पारंपरिक धार्मिक विधा गौ ग्रास निकालने 10 रुपया प्रतिदिन निकालकर गुल्लक में संग्रहित राशि को गौ पाष्टमी पर गौ सेवा केंद्र गौ शाला में समर्पित करना चाहिए। यह बातें मप्र गौ-पालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एवं स्वामी अखिलेश्वरानंद ने जागत गांव हमार से साक्षात्कार में कही। बातचीत के मुख्य अंश-

सवाल: गौ सेवा, सनातन धर्म और संस्कृति के केन्द्र में है। इसके बावजूद गौ माता की स्थिति समाज में बेहतर नहीं है। इसका समाधान क्या है?
जवाब: सेवा शब्द भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस शब्द के भावों के प्रकार बहुत बड़े हैं। गौ सेवा तो भारतीयों की मूल प्रवृत्ति, तदनुरूप गौपालन, गौसेवा, गौभक्ति सनातन धर्म की पारम्परिक अभिरुचि रही है। जहां तक सत्ता का सवाल है, सरकारें, गौपालन के लिए अपनी सुस्पष्ट नीतियों का निर्माण करें। गौवंश के लिए प्राकृतिक संसाधन, जंगल, जमीन, जल और यत्किंचित वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराएं। गाय का संबंध गावों से,जंगल से है। गौ-अभयारण्य, गौवंश वन्य बिहार, गांवों रैन बसेरा (गोठान) यह सरकार के हिस्से का काम है। वास्तव में सत्ता और समाज दोनों को ही मिलकर समस्या का समाधान खोजना होगा।

सवाल: गायों के संरक्षण और संवर्धन में सत्ता और समाज की क्या भूमिका होनी चाहिए? 
जवाब: कलियुग तो अर्थ और काम का युग है। जब किसी युग में अर्थ और काम ही मूल प्रवृत्ति होकर उभर रहे होते हैं तब धर्म और मोक्ष के भाव अपना वास्तविक अर्थ खोने लगते हैं, यही कारण है कि आज गाय और सम्पूर्ण गोवंश का महत्व कम हो रहा है। गौवंश के महत्व और उसके महत्व के विविध पक्षों को युगानुकूल परिभाषित कर स्थापित करना, गौवंश की सेवा/संरक्षण/संवद्र्धन की दृष्टि से, समाधान के उपायों का यह प्रथम सोपान है, इसके लिए गाय के सभी महनीय तथ्यों की जानकारी जन-जन तक पहुंचाना युग की अनिवार्य आवश्यकता है।
सवाल: मध्यप्रदेश में गौ संवर्धन के लिए कोई रूप रेखा कब तक बनेगी? 
जवाब: गौमाता के संरक्षण और संवद्र्धन में सर्वप्रथम गौपालक परिवारों में गौपालन की पारम्परिक अभिरुचि को प्रोत्साहन देना और भारत के घर-घर में प्रत्येक परिवार में यह बताना जरूरी है कि गाय हमारे घर और आंगन में बने खूंटे पर ही बच पाएगी। गाय भारतीय घरों की शोभा है, वह हमारे घर की सदस्य है। भारत के किसान, गौ सेवक, गौपालक, गौ प्रेमी ही इसके जीवन की रक्षा करने में सक्षम और समर्थ हैं, यह विश्वास भरना आवश्यक है। 

सवाल: चरनोई भूमि को लेकर आप संघर्ष कर रहे हैं। उसका परिणाम क्या मिला?
जवाब: जब मैं मध्यप्रदेश गौपालन एवं पशुधन संवद्र्धन बोर्ड का दायित्व संभाल रहा था, उस समय गौवंश की समस्या के निकारण के लिए गौवंश संरक्षण और किसानों की फसल सुरक्षा की दृष्टि से सरकार ने एक समिति बनायी गई थी, उस समिति के सुझावों पर सरकार ने एक रोडमैप बनाया था, उसके अनुसार क्रियान्वयन की दिशा में सभी जिला प्रशासन के अधिकारियों एवं जिलों के पुलिस प्रशासन को निर्देश जारी किए गए थे। गौ पालकों के लिए भी एक निर्देश जारी हुआ था। मेरा वर्तमान में यही मानना है कि-उसी रोडमैप को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। रही मेरे संघर्ष की बात तो मेरा मानना है कि-जिनको यह जिम्मेदारी दी गई है, उन प्रशासनिक अधिकारियों एवं समाज के जागरूक नागरिकों को अपनी संयुक्त जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए।

सवाल: गौ संरक्षण में मप्र अन्य राज्यों के लिए मॉडल बनने की क्या संभावनाएं हैं?  
जवाब: मध्यप्रदेश ही एक ऐसा राज्य है जहां देश का सर्वाधिक गौवंश है। मप्र का 95 हजार वर्ग किमी का जंगल गायों के जीवन रक्षण एवं गोवंश के संरक्षण का आश्रय स्थल है। मप्र गौवंश के लिए बेहतर कार्य करने वाला एक माडल राज्य बनाया जा सकता है। मप्र में 1916 से 2000 तक 10 गौ सदन होते थे। अविभाजित मप्र में इन 10 गौ सदनों की भूमि लगभग 7400 एकड़ होती थी। छत्तीसगढ़ राज्य पृथक हो जाने से 2 गौ सदन एवं उसकी भूमि वहां चली गई। प्रदेश में बचे आठ गौ सदनों को तत्कालीन सरकार ने भंग कर दिया। ये गौ सदन प्राय: सभी वन विभाग की भूमि पर ही बने थे। प्रदेश में भंग किए गए गौ सदनों की भूमि 6700 एकड़ के लगभग है। भंग गौ सदनों को सरकार पुन: बहाल कर दे तो प्रदेश में गौ वंश के संरक्षण की समस्या का 60 फीसदी समाधान तत्काल हो जाएगा।

सवाल: गौ पालन को लेकर मानव जीवन पर प्रभाव तथा धार्मिक दृष्टि से क्या प्रभाव होगा?
जवाब: जहां तक गौ संरक्षण में सामाजिक सहभागिता का प्रश्न है तो गायों के संबंध में हमें यह धारणा बनाकर कार्य करना होगा कि गौ वंश कभी भी अनार्थिक और अनुपयोगी नहीं होता। दूध न देने और बछड़ा-बछिया न देने पर भी तथा कृषि कार्य के अयोग्य या भार ढ़ोने की क्षमता रहित, असमर्थ होने के बाद भी गौ वंश आधारित अर्थशास्त्र समाप्त नहीं होता। गोबर-गौमूत्र पर आधारित गौवंश का अर्थशास्त्रीय महत्व सदैव बना रहता है, इस कारण सामाजिक सहभागिता भी प्रासंगिक रहती है। 

फैक्ट फाइल

निराश्रित गौ वंश के व्यवस्थापन के लिए प्रदेश में लगभग 1 हजार गौशालाएं निर्माणाधीन हैं। इससे एक लाख गौ वंश को आश्रय मिलेगा। मप्र में 905 गौ शालाओं का संचालन किया जा रहा है। जिनमें 71 हजार गौवंश हैं। गौशालाओं के स्वावलंबन के लिए गौ-काष्ठ, पंचगव्य उत्पादन, वर्मी पिट, गमला बनाने का निर्माण कार्य भी किया जा रहा है।